अगर मरकज़ में जमात ने मांगा था 17 गाड़ियों का कर्फ्यू पास, तो किसने नहीं सुनी बात ?

नई दिल्ली: दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में इकट्ठा भीड़ में से कोरोनावायरस के 24 मरीज पाए गए हैं और वहीं इस जमात में शामिल होने 7 लोगों की मौत हो गई है. जिसमें से 6 तेलंगाना और 1 श्रीनगर का शख्स है. लेकिन कोरोनावायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए बरती जा रही सतर्कता के बीच देश की राजधानी दिल्ली में ही इतनी बड़ी लापरवाही सामने आई है. लेकिन इससे पहले कोई आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू होता कि दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता सत्येंद्र जैन ने ही आयोजकों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, ‘घोर अपराध किया है’. इसके साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि यहां से निकाले गए लोगों को क्वारंटाइन करने के लिए केंद्र सरकार ने जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम को आइसोलेशन सेंटर बनाने से इनकार कर दिया है. 

लेकिन इसी बीच तबलीगी जमात जिसमें लोग शामिल होने आए थे, की ओर से एक बयान जारी किया है. उसकी ओर से जो कहा गया है अगर वह सारे तथ्य सही हैं तो यह सरकार और प्रशासन की ओर से बरती गई घोर लापरवाही हो सकती है जिसने दिल्ली को इस भीषण बीमारी के बीच एक बड़े संकट में डाल दिया है.
क्या कहा गया है तबलीगी जमात की ओर से जब ‘जनता कर्फ्यू’ का ऐलान हुआ, उस वक्त बहुत सारे लोग मरकज में थे. उसी दिन मरकज को बंद कर दिया गया. बाहर से किसी को नहीं आने दिया गया. जो लोग मरकज में रह रहे थे उन्हें घर भेजने का इंतजाम किया जाने लगा. 21 मार्च से ही रेल सेवाएं बन्द होने लगीं. इसलिए बाहर के लोगों को भेजना मुश्किल था. फिर भी दिल्ली और आसपास के करीब 1500 लोगों को घर भेजा गया. अब करीब 1000 लोग मरकज में बच गए थे. जनता कर्फ्यू के साथ-साथ 22 मार्च से 31 मार्च तक के लिए दिल्ली में लॉकडाउन का ऐलान हो गया. बस या निजी वाहन भी मिलने बंद हो गए. पूरे देश से आए लोगों को उनके घर भेजना मुश्किल हो गया.   प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का आदेश मानते हुए लोगों को बाहर भेजना सही नहीं समझा. उनको मरकज में ही रखना बेहतर था.  24 मार्च को SHO निज़ामुद्दीन ने हमें नोटिस भेजकर धारा 144 का उल्लंघन का आरोप लगाया. हमने इसका जवाब में कहा कि मरकज को बन्द कर दिया गया है. 1500 लोगों को उनके घर भेज दिया गया है. अब 1000 बच गए हैं जिनको भेजना मुश्किल है. हमने ये भी बताया कि हमारे यहां विदेशी नागरिक भी हैं.
इसके बाद हमने एसडीएम को अर्जी देकर 17 गाड़ियों के लिए कर्फ्यू पास मांगा ताकि लोगों को घर भेजा जा सके. हमें अभी तक को पास जारी नहीं किया गया. 25 मार्च को तहसीलदार और एक मेडिकल कि टीम आई और लोगों की जांच की गई. 26 मार्च को हमें SDM के ऑफिस में बुलाया गया और DM से भी मुलाकात कराया गया. हमने फंसे हुए लोगों की जानकारी दी और कर्फ्यू पास मांगा. 27 मार्च को 6 लोगों की तबीयत खराब होने की वजह से मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया.  28 मार्च को SDM और WHO की टीम 33 लोगों को जांच के लिए ले गई, जिन्हें राजीव गांधी कैंसर अस्पताल में रखा गया. 28 मार्च को ACP लाजपत नगर के पास से नोटिस आया कि हम गाइडलाइंस और कानून का उल्लंघन कर रहे हैं.  इसका पूरा जवाब दूसरे ही दिन भेज दिया गया.

30 मार्च को अचानक ये खबर सोशल मीडिया में फैल गई की कोराना के मरीजों की मरकज में रखा गया है और टीम वहां रेड कर रही है.  अब मुख्यमंत्री ने भी मुकदमा दर्ज करने के आदेश दे दिए. अगर उनको हकीकत मालूम होती तो वह ऐसा नहीं करते.  हमने लगातार पुलिस और अधिकारियों को जानकारी दी के हमारे यहां लोग रुके हुए हैं. वह लोग पहले से यहां आए हुए थे. उन्हें अचानक इस बीमारी की जानकारी मिली.  हमने किसी को भी बस अड्डा या सड़कों पर घूमने नहीं दिया और मरकज में बन्द रखा जैसा के प्रधानमंत्री का आदेश था. हमने ज़िम्मेदारी से काम किया.


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