दृष्टिहीन अफसर ड्यूटी के साथ अपने वेतन से दिव्यांगों को पहुंचा रहे राशन

इंदौरमन में पीड़ित मानवता की सेवा का भाव हो तो फिर ईश्वर की दी हुई कोई कमी भी आपकी राह नहीं रोक सकती। कोरोना महामारी के बीच एक दृष्टिहीन अफसर ऐसी ही मिसाल बने हुए हैं। वे अपनी सरकारी ड्यूटी का फर्ज तो निभा ही रहे हैं, अपने जैसे ही दृष्टिहीनों की मदद भी कर रहे हैं। कर्फ्यू और लॉकडाउन में जिन दृष्टिहीनों की सुध लेने वाला कोई नहीं है, उनको वे अपने वेतन से राशन खरीदकर पहुंचा रहे हैं। वे दिन में ड्यूटी कर रहे हैं और सुबह या शाम के बचे हुए वक्त में शहर के अलग-अलग इलाकों में जरूरतमंद दृष्टिहीनों का दर्द बांटने पहुंच जाते हैं। ये अधिकारी हैं नायब तहसीलदार संजय यादव जो इंदौर जिले के कंपेल, खुड़ैल, सिवनी क्षेत्र में मुस्तैदी से काम कर रहे हैं।


शासन की गाइडलाइन है कि दिव्यांगों को कोरोना के बचाव की किसी ड्यूटी में न लगाया जाए, लेकिन नायब तहसीलदार यादव अपनी इच्छा से ड्यूटी कर रहे हैं। अभावों में पले यादव ने खुद स्वयंसेवी संस्थाओं में रहकर पढ़ाई की है। दिव्यांगता का दर्द क्या होता है वे भलीभांति जानते हैं। शहर में कई दृष्टिहीन लोग फेरी लगाकर मूंगफली, मोमबत्ती और अगरबत्ती बेचने का काम करते हैं। लॉकडाउन के कारण उनकी रोजी-रोटी खत्म हो गई है। इसमें से कुछ यादव के साथ संस्था में रहकर पढ़ने वाले दृष्टिहीन भी हैं। जब उन्हें इन दृष्टिहीनों की दयनीय हालत के बारे में पता चला तो खुद ही अपने वेतन से राशन खरीद लिया। इसमें आटा, दाल, चावल, तेल, मसाले, साबुन आदि के पैकेट बनवाए और शहर के परदेशीपुरा, सुदामा नगर, गांधी नगर, जिंसी इलाके में दृष्टिहीनों के घर तक पहुंच गए।


नायब तहसीलदार यादव कहते हैं कि सरकारी नौकरी में आए ही इसलिए कि लोगों की मदद कर पाएं। शांतिकाल में तो सब काम करते हैं, लेकिन आपातकाल में काम करना तो देश सेवा का अवसर है। वे कहते हैं, कभी न कभी तो मरना ही है, बीस-पच्चीस साल पहले मरें या बाद में क्या फर्क पड़ता है, लेकिन देश को आज हमारी जरूरत है। नगर निगम खाना बांटता है, लेकिन जब हमारे दृष्टिहीन भाई पहुंचते हैं तो कई बार खाना खत्म हो जाता है। वे लाइन में भी पीछे रह जाते हैं। हम दृष्टिहीनों का एक समूह है। जब मुझे उनकी समस्या पता चली तो उनकी मदद के लिए आगे आया।


दरअसल, नायब तहसीलदार यादव को शासकीय सेवा में करीब 4 साल होने जा रहे हैं। वे धार जिले के खाचरौदा गांव के मूल निवासी हैं। वे बताते हैं, मेरे अकेले की मदद कम पड़ेगी, इसलिए कुछ समाजसेवियों से भी संपर्क कर रहा हूं। शहर में कुछ दानदाता हैं जो इन दिव्यांगों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। यदि जरूरत पड़ी तो अप्रैल महीने का वेतन भी अपने जैसे दृष्टिहीन भाई-बहनों के लिए खर्च कर दूंगा।


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