जोगीसार में जन्मे और छत्तीसगढ़ की राजनीति में छा गए अजीत जोगी

बिलासपुर। तब घने जंगलों के बीच बसे ठेठ आदिवासी बहुल गांव जहां न सड़क हो और न ही प्राथमिक शिक्षा के लिए स्कूल। इसी गांव की माटी में अजीत जोगी ने जन्म लिया। गांव की गलियों में अपनों के साथ खेले और पले बढ़े। मां सरस्वती जैसे उनके मन मस्तिष्क में विराजित हो गईं। यही नहीं छत्तीसगढ़ की राजनीति में वे धूमकेतु की तरह छा गए। जिनकी कामयाबी पर जोगीसार इठलाता था। आज शांत है। जोगीसार में ऐसी शांति कभी देखने को नहीं मिली। गांव की गलियां सुनी हैं। अविभाजित बिलासपुर जिले का छोटा सा गांव जोगीसार। जो राज्य निर्माण के बाद से ही छत्तीसगढ़वासियों की जुबान पर चढ़ा हुआ है। ऐसा कोई राजनेता व कार्यकर्ता नहीं जो जोगीसार को न जाने।


यही वह गांव है जिसने प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी को पहचान दिलाई । यही जोगीसार आज अपने लाडले के बिछुड़ने का गम झेल नहीं पा रहा है। चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है। गांव की गलियां सुनी हैं। लोग घर के बाहर बैठे तो हैं पर चेहरे पर उदासी छाई हुई है। कोई कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। अपने लाडले के बिछुड़ने का गम उसे खाए जा रहा है। यह जानते हुए भी कि जाने वाले लौट कर कभी नहीं आते। इसके बाद भी जोगीसार ईश्वर से यही याचना कर रहा है कि हमारा लाडला लौटकर वापस आ जाए।


अपनों के बीच मनाते थे तीज-त्योहार


 


जोगी संबंधों को निभाने को लेकर बेहद संवेदनशील थे। मित्रों और जान पहचान वालों के साथ ही रिश्तेदारों से संबंध निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। यही कारण है कि तीज त्योहार में वे जोगीसार जाना नहीं भूलते थे। कितना ही व्यस्त कार्यक्रम क्यों न हो वे समय से पहले अपनों के बीच अपने गांव पहुंच ही जाते थे। नवाखाई में उन्होंने परंपरा ही शुरू कर दी थी। जोगीसार में ही परिवार और संबंधियों के बीच नवाखाई मनाते थे। एक दिन पहले या फिर उसी दिन सुबह वे पहुंच जाते थे। राज्य निर्माण के बाद से दो दशकों तक यह परंपरा निभाते आते आ रहे थे। आने वाले तीज त्योहार और नवाखाई में परिवार के सदस्य तो नजर आएंगे पर जोगीसार को उनको अपना लाडला नजर नहीं आएगा। जोगीसार की आंखें उन्हें खोजती रहेगी। अब जोगीसार की किस्मत में अपने लाडले के बिछुड़ने का गम ही रह जाएगा


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