'... निगाहों में सनम की जैसे कोरोना हुए हैं हम' ओपन माइक कार्यक्रम में युवाओं ने दिखाया अपना हुनर
गोरखपुर। आर. आर. इंटरटेनमेंट और आर. आर. इवेंट ग्रुप की तरफ से आयोजित एक ओपन माइक कार्यक्रम में युवाओं ने अपने अंदर छिपी प्रतिभा को सबके समक्ष रखा। कार्यक्रम का आयोजन एक निजी रेस्टोरेंट में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए किया गया।
कार्यक्रम में शहर और आसपास के जिलों के युवा शायर और कवियों ने अपनी कविता और ग़ज़लों से सबका दिल मोह लिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता गोरखपुर शहर की पूर्व मेयर डॉक्टर सत्य पांडे ने किया। उन्होंने कहा कि युवा पानी के धारा समान उन्हें जैसी दिशा दी जाएगी वैसा आकार ग्रहण कर लेंगे।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित सरदार जसपाल सिंह ने कहा लगभग 5 महीनों के बाद अपने घर से बाहर किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने का मौका मिल रहा है। बहुत अच्छा लग रहा है युवाओं को देखकर।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित शमशाद आलम एडवोकेट ने आयोजक मंडल को बहुत बधाई दी और लॉकडाउन के बाद किए गए इन प्रयासों की सराहना की। वही विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित अंतरराष्ट्रीय युवा शायर फैज़ खुमार बाराबंकवी ने सफल आयोजन के लिए आयोजक मंडल को बधाई दी और कहा कि यकीनन आज का कार्यक्रम देख कर यह एहसास हो गया कि हमारी सांस्कृतिक विरासत अभी बची हुई है। साथ ही फ़ैज़ खुमार बाराबंकी ने अपने दादा के कलाम को सुना कर खूब वाहवाही बटोरी उन्हीं के अंदाज में। कार्यक्रम के सहसंयोजक मिन्नत गोरखपुरी ने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य युवाओं के अंदर छुपी प्रतिभा से उनका परिचय कराना था। और उन्हें एक अवसर देकर समाज के सामने प्रस्तुत करना था। कार्यक्रम का संचालन शालिनी दुबे और मिन्नत गोरखपुरी ने संयुक्त रूप से किया।कार्यक्रम का संचालन करते हुए मिन्नत गोरखपुरी ने जैसे ही पढ़ा,
कभी बाबू, कभी बेबी, कभी सोना हुए हैं हम ,
कभी हम मुस्कुराहट थे, कभी रोना हुए हैं ,
वो हमको देखकर रास्ता मियां ऐसे बदलती है,
निगाहों में सनम की जैसे कोरोना हुए हैं हम ।।
लोगों ने खूब तालियां बजाई।
इसी क्रम में फ़ैज़ खुमार बाराबंकवी ने पढ़ा......
अंधेरे बहुत हैं सुनो फ़ैज़ तुमको ,
चराग़े मोहोब्बत जलाना पड़ेगा ।।
सुमैया सिद्दीकी ने पढ़ा,
हसीन चेहरे को लोग करते हैं नुमाया।।
दिल कितना भी हसीन हो सिद्दीकी
हो जाता है ज़ाया।।।
शालिनी दुबे ने पढ़ा,
यह परिंदे क्यों फड़फड़ा रहे हैं लग रहा है ।
मेरा खत लेकर तेरे घर जा रहे हैं ।।
फरहान आलम कैसर ने पढ़ा,
फाकों से ही करना पड़ता है समझौता ।
खाने में जब हिस्सेदारी आ जाती है ।।
अल्तमश ने पढ़ा
वो हम से क्या सोेच, जो हम से क्या सोचे ।
जो हम सोचे वो वो सोचे,वो सोचे जो वो हम सोचे।।
सारिका पाल ने पढ़ा,
जिनकी उठती नही थी पलकें मेरे आगे ।
आज उनके मुंह मे भी जुबान है ।।
डॉक्टर मुस्तफा खान ने पढ़ा,
मंजिल खुद ब खुद तुम्हारे कदम चूमेगी।
बस अपने सफर पर चल के तो देखो।।
उत्कर्ष से पढ़ा,
लेखक को लेखक बनने को क्या बनना पड़ता है।
मरना,जीना,रोना,हसना सब कुछ सहना पड़ता है।।
इसी कड़ी में आशीष उपाध्याय,फिरदोस, विवेक शुक्ला,शिवांगी पाठक जूही, विशाल जयसवाल, विशाल मिश्रा, शिव मोहन, आयरा मलिक आदि ने अपनी प्रस्तुति दी।इस अवसर पर अरशद अहमद, विनायक अग्रहरी, राज चौरसिया अयान खान, अंकिता सिंह आदि उपस्थित रहे।अंत में कार्यक्रम के संयोजक राहुल राज ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।
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