सकारात्मक पहल : मध्यप्रदेश के डही में मुस्लिम समाज में मृत्युभोज पर पाबन्दी
- समाज में पैसे और समय की बर्बादी को रोकने के लिए लिया अहम फैसला
डही, धार( हारून रशीद खत्री )। डही में मुस्लिम समाज ने मौत, मय्यत के मौके पर होने वाले खाने(मृत्यु भोज ) पर पाबन्दी लगाने का फैसला लिया है। पिछले जुमे की नमाज के दौरान लिये गये इस फैसले के तहत् अब किसी परिवार में मौत, मय्यत होने पर तीजे, दसवें, बीसवे, तीसवें, चालीसवे पर चेहल्लुम वगैरह की शक्ल में होने वाले आम, अवाम के खाने पर पाबन्दी लगा दी गई है। इस फैसले के मुताबिक ऐसे मौकों पर केवल ईसाले सवाब के शरीअत के मुताबिक जाईज कामकाज दरूद, फातिहा, कुरआन ख्वानी वगैरह पर कोई पाबन्दी नहीं रहेगी। चूंकि ऐसे मौकों पर किये जाने वाले खाने के असल हकदार फकीर और मिस्कीन लोग रहते है, इसलिए फकीरों, मिस्कीनों के लिए ऐसे मौके पर होने वाले खाने पर कोई पाबन्दी नहीं रहेगी। इसके अलावा संबंधित परिवार बाहर से ऐसे मौकों पर आने वाले मेहमानों और रिश्तेदारों के लिए खाने का इन्तेजाम कर सकेगा, लेकिन गांव में रहने वाले लोगों के लिए किसी भी तरीके से कोई खाने का इंतेजाम नहीं किया जाएगा।
फकीरों, मिस्कीनों का होता है हक : फतवा
मौत - मय्यत के मौके पर होने वाले खाने के असल हकदार फकीर और मिसकीन होते हैं। ऐसे मौके पर मालदार लोगों को दावत देकर खाना खिलना जाइज़ नहीं। यह बात इस बारे जारी किए गए अपने फतवे में मुफ़्ती- ए- अहले सुन्नत हजरत अल्लामा मुफ़्ती मोहम्मद मंजर नाज मुस्तफा सिद्दीकी अशरफी, मकराना ने कही। इस फतवे के मद्देनजर मुस्लिम समाज डही के द्वारा आम सहमति से यह फैसला लिया गया है।
अहले सुन्नत वाल जमाअत, डही के सदर हाजी हिसामुद्दीन कुरेशी और खजांची हारून रशीद खत्री ने बताया कि कौम में नाजाइज़ रस्म, रिवाजों को रोके जाने के लिहाज से यह फैसला आम सहमति से लिया गया है। इस फैसले से समाज में हो रही अनावश्यक पैसे और वक्त की बर्बादी रूकेगी।
गौरतलब है कि मुस्लिम समाज डही के द्वारा की गई यह पहल अपने आप में एक अभिनव पहल है, उम्मीद की जा रही है कि इस अहम फैसले को समाजजन जरूर अपनाएंगे। फाइल फोटो
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