भाजपा की छतरी, भाजपाई ही निशाने पर...!
- अफसरी के शौक में किया कई भाजपा नेताओं का नुकसान
(विशेष संवाददाता)
पशु चिकित्सालय भोपाल (फाइल फोटो )
भोपाल। कभी खुद को दिग्विजय सिंह और कमलनाथ का करीबी करार देने वाले एक पशु चिकित्सक अब भाजपा नेताओं से अपनी नजदीकियां बताते नजर आते हैं। मूल विभाग छोड़कर बरसों से अलग अलग दफ्तरों में वे साहबगिरी कर चुके हैं। अपनी कुर्सी बचाए रखने उन्होंने पिछले कुछ सालों में कई नेताओं, अफसरों और समाज का बड़ा नुकसान करने में कोताही नहीं बरती है। अब भी अपने मूल विभाग विभाग पशु पालन से बाहर साहबगिरी करने की जुगत में वे लगे हुए हैं।
मामला राजधानी स्थित पशु पालन संचालनालय में पदस्थ एक चिकित्सक डॉ एसएमएच जैदी से जुड़ा है। पिछले करीब 15 बरसों से विभाग से प्रतिनियुक्ति सेवाओं में जुटे हुए हैं। इस दौरान वे मप्र वक्फ बोर्ड, प्रदेश हज कमेटी, राज्य अल्पसंख्यक आयोग, घुमक्कड़ जाति आयोग, विमानन विभाग समेत कई विभागों में प्रतिनियुक्ति पर रह चुके हैं। शासकीय नियमों के मुताबिक तीन साल से ज्यादा प्रतिनियुक्ति निरंतर न रहने के नियम को धता दिखाते हुए जैदी अपने मकसद के लिए तमाम राजनीतिक रसूखों का इस्तेमाल करने में नहीं चूकते हैं। इसके विपरित पशु पालन विभाग में चिकित्सकों, अधिकारियों, कर्मचारियों की कमी के चलते विभाग अपने दायित्व पर खरा नहीं उतर पा रहा है।
विश्नोई से लेकर अकील तक निशाने पर
सूत्रों का कहना है अपने जिद्दी और अड़ियल रवैए के चलते डॉ जैदी की कम ही लोगों से पटरी बैठ पाती है। तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण और पशु पालन विभाग के मंत्री अजय विश्नोई पर उन्होंने बेहद घिनौना आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ अदालत में मामला दर्ज कराया था। मानहानि और अन्य कई मामले अब तक मुकाम पर नहीं पहुंच पाए हैं। इन मामलों की बदनामी के चलते अजय विश्नोई को एक चुनाव में पराजय का मुंह भी देखना पड़ा था। इसी तरह के मामले में उन्होंने भाजपा द्वारा नामित किए गए मप्र वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन शौकत मोहम्मद खान को भी सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ा है। इधर कांग्रेस विधायक और पूर्व अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री आरिफ अकील से भी उनका विवाद का नाता है। वक्फ जायदाद को नुकसान पहुंचाने को लेकर अकील अक्सर जैदी के खिलाफ विधानसभा और अदालतों तक आवाज उठाते रहे हैं।
इन्हें भी पहुंचाया नुकसान
भाजपा सरकार में नियुक्त किए गए मप्र वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष आलमगीर गौरी, सदस्य पूर्व विधायक हामिद काजी, जिला मुतावल्ली कमेटी अध्यक्ष सुलतान अब्दुल अजीज, भोपाल जिला वक्फ कमेटी अध्यक्ष अलीम कुरैशी, अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य डॉ टीडी वैध, आनंद बर्नाड, लाल भाई आदि को भी डॉ जैदी ने मप्र वक्फ बोर्ड के सीईओ और अल्पसंख्यक आयोग के सचिव रहते हुए कई मुश्किलें खड़ी की हैं। इनमें से अधिकांश भाजपा नेताओं को बीच कार्यकाल अपना पद छोड़ना पड़ा है।
अफसरों से भी दुश्मनी का व्यवहार
डॉ जैदी ने अपने आला अधिकारियों के खिलाफ भी शिकायती कार्रवाई करने में कसर नहीं छोड़ी है। पशु पालन विभाग के सचिव सुधांशु कमल को लेकर जैदी ने फर्जी नामों और फर्जी मामलों को लेकर कई शिकायतें करवाई हैं। इधर विमानन विभाग में अपनी पसंद के अधिकारी को स्थापित करवाने की मंशा के साथ उन्होंने तत्कालीन स्टेट हैंगर अभियंता संजय सुराना के खिलाफ कई मामले खड़े करवाए हैं। इसके अलावा शिकायती दौर में उन्होंने चीफ सेक्रेटरी इकबाल सिंह बैंस को बदनाम करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
वक्फ जायदाद का बड़ा नुकसान
मप्र वक्फ बोर्ड के सीईओ रहते हुए जैदी ने कई वक्फ संपत्तियों को निजी करार देने, गलत तरीके से किरायदारियों कर देने, दागदार लोगों को कमेटियों की कमान सौंपने की गड़बड़ियां की हैं। इन मामलों को लेकर ट्रिब्यूनल, जिला अदालत से लेकर हाईकोर्ट और विभागीय जांचों से लेकर लोकायुक्त कार्यवाहियां भी हुई हैं। कुछ मामलों को लेकर शासन ने डॉ जैदी को लंबे समय तक सेवाओं से अलग भी रखा है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि सियासी रसूख का इस्तेमाल कर वे इन कार्यवाही से बाहर हो गए हैं।
एक और लोकायुक्त शिकायत
सूत्रों का कहना है कि मप्र वक्फ बोर्ड में सीईओ रहते हुए जैदी ने करोड़ों रुपए की हेराफेरी की है। जिसको लेकर कई मामले अदालत में प्रचलित हैं। पशु पालन विभाग में सेवा करते हुए होने वाली आमदनी और इसके विपरित उनकी संपत्तियों को काली कमाई करार दिया जा रहा है। आय से अधिक संपत्ति को लेकर कुछ सामाजिक संस्थाओं ने संयुक्त रूप से शिकायती आवेदन देकर लोकायुक्त से मामले की जांच की मांग की है। शिकायत में जैदी के एयरोसिटी स्थित महंगे प्लॉट, एयरपोर्ट रोड पर स्थित फार्म हाउस, बाबे अली क्षेत्र में एक बड़े फ्लेट, इंदौर में कई संपत्तियों, महंगी कार आदि का ब्यौरा देते हुए कहा कि जैदी ने करोड़ों रुपए की संपत्ति अपने परिवार और रिश्तेदारों के नाम पर कर रखी है। जिनकी निष्पक्ष जांच होने पर भ्रष्टाचार के कई मामलों की पोल खुलने की उम्मीद है।
इनका कहना है
प्रतिनियुक्ति शासकीय नियमों के अनुसार होती है। नियोक्ता और प्रतिनियुक्ति वाले दोनों विभाग की सहमति से होता है।
डॉ एसएमएच जैदी,पशु चिकित्सक
Comments
Post a Comment