मक्का मस्जिद के इमाम मौलाना हैदर के नाम ही से कांपती थी ब्रिटिश फ़ौज: मुफ़्ती सलीम नूरी

  • मुस्लिम आलिमों, मुफ़्तियों, इमामों और मज़हबी पेशवाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अदा की थी अग्रणी भूमिका

बरेली, उत्तर प्रदेश। दरगाहे आला हज़रत स्थित आला हज़रत के स्थापित कर्दा मदरसा मंज़रे इस्लाम गत दो माह से अपनी ई-पाठशाला द्वारा समय-समय पर युवाओं, छात्रों विशेष कर मुस्लिम समुदाय को देश की आज़ादी की जंग और अंग्रेज़ों से इस देश को आज़ाद कराने वाले मुस्लिम देश प्रेमियों और मुस्लिम स्वतंत्रता संग्रामियों के इतिहास की जानकारी देने का एक ऐतिहासिक और सराहनीय कारनामा अंजाम दे रहा है।

दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हानी मियाँ और सज्जादानशीन हज़रत अहसन मियाँ साहब की देखरेख में चलने वाले आला हज़रत के इस इदारे की ई-पाठशाला द्वारा ज़्ाूम एप, गूगल मीट और अपनी अधिकृत वेवसाइट जैसे आधुनिक संसाधनों के माध्यम से आॅनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें मक्का मस्जिद हैदराबाद के इमाम, मशहूर स्वतंत्रता सेनानी और ब्रिटिश रेजीडेंसी पर हमला कर के जंगे आज़ादी के इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में अंकित कराने वाले मौलवी सैयद अलाउद्दीन हैदर से संबंधित जानकारी, देश के प्रति उनके प्रेम और उनके कुर्बानी के जज़्बे पर रौशनी डाली गयी तथा उनके कारनामों से युवाओं और छात्रों को अवगत कराया गया।

मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि आज के इस विशेष आॅनलाइन कार्यक्रम में मशहूर बुद्विजिवी और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के प्रचार व प्रसार में विशेष रूचि रखने वाले मदरसा मंज़रे इस्लाम के वरिष्ठ शिक्षक मुफ़्ती मोहम्मद सलीम बरेलवी साहब ने बताया कि मुहम्म्द कुली कुतुबशाह ने 1591 ई0 को चार मीनार का निर्माण कराके शहर हैदराबाद की स्थापना की। दिसम्बर 1610 ई0 में उन्होंने एक बड़ी मस्जिद बनाने का आदेश जारी किया मगर 1612 ई0 में उनका देहांत हो गया तो उनके उत्तराधिकारी की सूरत में उनके दामाद सुलतान मुहम्मद कुतुबशाह ने दिसम्बर 1617 ई0 को इस भव्य मस्जिद का निर्माण शुरू कराया जो 77 वर्षों के बाद मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के शासनकाल में निर्माण कार्य पूरा हुआ और इसमें नमाज़ शुरू हुयी मौलवी सैयद अलाउद्दीन हैदर जिनके नाम से ही अंग्रेज़ी फौज कांपती थी वह ब्रिटिश शासनकाल में इसी मस्जिद के इमाम और एक बड़े मौलवी और मुफ़्ती थे। इनका जन्म 1824 ई0 को हैदराबाद में हुआ उस वक़्त पूरा देश अंग्रज़ों की साज़िशों का शिकार था। इन्होंने मज़हबी शिक्षा मदरसे से प्राप्त की और अपने देश को अंग्रेज़ों से मुक्ति दिलाने का जज़्बा लेकर यह परवान चढ़े। यह एक सच्चे मुसलमान होने के साथ-साथ एक सच्चे देशप्रेमी भी थे और अपने मुल्क में समस्त देशवासियों के दरम्यान प्यार मुहब्बत और आपसी सौहार्द का वातावरण देखना चाहते थे। इनका दृष्टिकोण यह था कि यदि समस्त हिन्दुस्तानी आपसी सौहार्द के साथ मिलजुल कर रहें तो यह देश न कभी गुलाम बन सकता है और न पिछड़ सकता है इसे उन्नती के शिखर पर ले जाने के लिये समस्त देशवासियों को नफ़रत का ख़ात्मा करके देश में आपसी सौहार्द का माहोल पैदा करना होगा। मुफ़्ती सलीम नूरी से अंगेज़ों के विरूद्व मक्का मस्जिद के इमाम साहब की बहादुरी का किस्सा बताते हुये कहा कि मक्का मस्जिद के इमाम सैयद अलाउद्दीन हैदर जिन्हें मौलवी अलाउद्दीन के नाम से भी जाना जाता है, एक उपदेशक और मक्का मस्जिद, हैदराबाद, भारत के ऐसे अद्भूत इमाम थे कि जो अरबी, फ़ारसी, उर्दू, तेलुगु और तेज दिमाग वाले प्रतिभा के विशेषज्ञ थे, उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 17 जुलाई 1857 को हैदराबाद रियासत में स्थित ब्रिटिश रेजीडेंसी पर हमले का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने ब्रिटिश सेना और उनके सहयोगियों के खिलाफ मक्का मस्जिद में अपने अनुयायीयों, नमाज़ियों, मदरसों के छात्रों, मौलवीयों, आलिमों, मुफ़्तियों और आम जनता की एक बड़ी भीड़ जमा करके अपनी तक़रीर से देश प्रेम का संदेश देते हुये अंग्रेज़ी शासन के विरूद्व उठ खड़े होने का आहवान करते हुये ब्रिटिश रेजीडेंसी पर हमला करने का कामयाब नेतृत्व किया।

विशेष अतिथि जनाब ज़हीर अहमद प्रशासनिक अधिकारी रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय बरेली ने ई-कार्यक्रम में बताया कि यह हमला 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान हुआ था। बाद में मौलवी अलाउद्दीन को ब्रिटिश समर्थक सहयोगियों ने पकड़ लिया और ब्रिटिश सेना को सौंप दिया। ब्रिटिश हुकूमत ने उन पर मुकदमा चलाकर उन्हें आजीवन काला पानी की सज़ा सुनाकर 28 जुलाई 1887 ई0 में सेलुलर जेल भेज दिया गया वह आजीवन कालापानी की सज़ा पाने और निर्वासित होने वाले पहले क़ैदी हैं कुछ दिनों के बाद 64 या 65 वर्ष की आयु में उनका यहीं देहांत हो गया।

मंज़रे इस्लाम के शिक्षक मास्टर ज़्ाुबैर रज़ा ख़ान साहब ने बताया कि भारत के दक्षिणी भाग में भी कई स्वतंत्रता संग्राम हुए और ऐसा ही एक संघर्ष मौलवी अलाउद्दीन की कमान में हैदराबाद में हुआ। मौलवी अलाउद्दीन का जन्म 1824 में वर्तमान तेलंगाना राज्य के नलगोंडा जिले में हुआ था। उन्होंने हैदराबाद में मक्का मस्जिद के प्रचारक और इमाम के रूप में काम किया। उन्होंने ब्रिटिश सेना पर हमला करने का फैसला किया जब अंग्रेजों ने जमींदार चीदा खान को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें हैदराबाद के रेजीडेंसी भवन में बंद कर दिया। 17 जुलाई 1857 को नमाज के बाद मौलवी अलाउद्दीन ने अपने दोस्त तुर्रेबाज खान और 300 अन्य स्वतंत्रता सेनानी के साथ ब्रिटिश रेजिडेंसी बिलिं्डग पर हमला किया। हमला विफल हो गया क्योंकि मंत्री सालार जंग ने मौलवी अलाउद्दीन और उनके दोस्त को धोखा दिया और. वह करीब 30 साल तक जेल में रहे और वहीं उनकी मौत हो गई। वह पहले कैदी थे जिन्हें सजा सुनाई गई और काला पानी भेज दिया गया। हमें ऐसे देशप्रेमियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानीयों से प्रेरणा लेकर देश की सुरक्षा के प्रति हमेशा कार्य करते रहना चाहिये और देश की उन्नती के लिये आपसी सौहार्द बनाये रखना चाहिये।

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