नागरिक चिंतन : क्या मिला हमको? साख पर धब्बा..!


✍️ इंतेखाब आलम लोदी

भारतीय प्रधानंत्री के अमेरिका दौरे और संयुक्त राष्ट्र साधारण सभा में उनका सम्बोधन इन दिनों देश की मीडिया में चर्चा का विषय होना चाहिए, बिना इस बात की परवाह किये कि अंजना ओम कश्यप की टीआरपी की भूख ने पीएम,देश और ख़ुद पत्रकारिता की साख पर धब्बा लगा दिया।

बात होना चाहिए कि यूएन जनरल असेम्बली में पीएम का संबोधन क्या रहा, अमेरिकी प्रेसिडेंट जो बाइडन के साथ भारतीय हितों को लेकर क्या सार्थक चर्चा हुई।

महत्वपूर्ण तथ्य क़्वाड के भविष्य और नए गठबंधन AUKUS (आकस) से भारतीय हितों का संरक्षण कैसे होगा।

इसमें दुखद पहलू यह रहा कि अमेरिका ने पीएम की अमेरिका में मौजूदगी के बावजूद यह स्पष्ट कर दिया कि नए गठबंधन AUKUS के कॉकस में भारत को - जापान को शामिल नहीं किया जाएगा।

यही नहीं, प्रेजिडेंट बाइडन ने आस्ट्रेलिया को भविष्य में अमेरिका का सबसे भरोसेमंद स्ट्रेटेजिक पार्टनर घोषित कर दिया।

इसके बाद क्वाड के सदस्य देशों के प्रमुखों की बैठक प्रेजिडेंट बाइडन के साथ होना थी, जिसको बाइडन ने सामूहिक न कर वन-टू-वन की।

इस वन-टू-वन के बैठक के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रेजिडेंट बाइडन के साथ मिलने और बात करने का मौक़ा मिला।

लेकिन बाइडन ने पीएम को गांधी जी की फ़िलॉसफ़ी पढ़ा दी, और सन्देश दे दिया कि अपने देश में गांधीवाद का संरक्षण करें।

इससे पूर्व अमेरिका की ही वाइस प्रेसिडेंट कमला हैरिस ने भी परोक्ष रूप से पीएम मोदी को अपने देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने का ताना दे दिया। इन मुलाकातों से क़्वाड को क्या मिला, शायद कुछ नहीं।


बल्कि मुझे लगता है बाइडन ने AUKUS बनाकर चीन को यह संदेश दिया है कि वह भारत-चीन विवाद में कोई सामरिक भूमिका नहीं निभाने जा रहा है, उसकी इच्छा तो बस प्रशांत क्षेत्र को शांत रखने की है। वह प्रशांत क्षेत्र में अपना वजूद और हस्तक्षेप बनाए रखना चाहता है। 

अब इसके दुष्परिणाम पर भी चर्चा होने ही चाहिए, AUKUS के अस्तित्व में आने से क़्वाड़ को न्यूट्रल कर दिया जा रहा है।अब चीन के ख़िलाफ़ हमारे साथ कोई स्ट्रेटेजिक पार्टनर नहीं है।

अफ़ग़ानिस्तान में भी अमेरिका ने निकलते वक़्त हमारे हितों का कोई ध्यान नहीं रखा। वहां तालिबान के क़ाबिज़ हो जाने पर हमारा लाखों-करोड़ों रुपयों का निवेश तो डूबा ही, हमारी सामरिक स्थिति को भी नुक़सान पहुंचा है।

बाइडन और कमला हैरिस से चर्चा के बाद पीएम को यूएन जनरल असेम्बली में वेक्सीन, शुद्ध जल, मकान और ज़मीन के अधिकार, या लोकतंत्र पर बात रखने के बाज़ाए स्ट्रेट फॉरवर्ड खेलते हुए सीधे-सीधे चीन की विस्तारवादी नीति, पाकिस्तान की आतंकी पनाहगाह और अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान से निकलने पर भारत के सामने पेश आ रही चुनौतियों को मुखरता से उठाना था।

लेकिन, यह हो न सका... और शायद इसका आभास दुनिया के अन्य देशों को रहा हो तो उस समय हॉल अधिकांश ख़ाली था। दरअसल यह सब हमारी कूटनीति और विदेशनीति की घोर असफ़लता रही। अब इन सब बातों को भूलकर हम कैसे निगेटिव ख़बर को पॉज़िटिव बनाएं। जैसा संघ चाहता है।

मेरे खयाल से देश के हर नागरिक को देश से सम्बंधित सही सूचना प्राप्त करने का अधिकार है, इसलिए ख़बर को तोड़ा - मरोड़ा नहीं जाना चाहिए।

यह कोई आलोचना नहीं, बल्कि एक नागरिक की चिंता है... इस चिंता को सरकार को समझना चाहिए।

" #दिनकर जी " बेसाख़्ता याद आए-

" और गिर भी तुम गए किसी गहराई में,

तब भी तो इतनी बात शेष रह जाएगी,

यह पतन नहीं है, एक देश पाताल गया,

प्यासी धरती के लिए अमृत घर लाने को"....!!



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