कोयला संकट : बेईमान प्रबंधन ने बना दिया सरकार को करोड़ों का कर्जदार
- घपलेबाजी से कमी, कमी से बढ़ रही बाहर की निर्भरता
✍️ खान आशु
भोपाल। प्रदेश में बड़ी कोयला खदानों की मौजूदगी के बावजूद बाहर से जरूरत पूरी करने की मजबूरी बनी हुई है। खदान प्रबंधन के भ्रष्टाचार, बदनीयत और ढीले रवैए के कारण प्रदेश सरकार कई सैकड़ा करोड़ रुपए की कर्जदार हो गई है। दूसरी तरफ प्रबंधन की सांठ गांठ ने खदानों के आसपास की बेशकीमती जमीनों की बंदरबांट भी धड़ल्ले से जारी है। भूमाफियाओं को फायदा पहुंचाने के लिए प्रबंधन ने इन जमीनों का सौदा तेज कर दिया है।
जानकारी के मुताबिक कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल बड़े डिफॉल्टर हैं। कोयला मंत्रालय ने इन राज्यों को पत्र लिखकर बकाया अदा करने को कहा है। इधर मप्र के पास बड़ी तादाद में कोयला खदान मौजूद होने के बाद बाहरी सप्लाई पर निर्भरता की वजह प्रबंधन का ढीला रवैया और इसके अधिकारियों के भ्रष्टाचार को माना जा रहा है। मौसम के कारण परंपरागत तरीके से लगने वाली आग में करोड़ों रुपए का कोयला स्वाहा तो हो ही रहा है। साथ ही इसके नाम पर करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार भी किया जा रहा है। इसको लेकर मामला सीबीआई तक पहुंच चुका है। बेईमानी की हद ये है कि प्रबंधन में बैठे लोग आग बुझाने के नाम पर भी लाखों रुपए का गोलमाल करने से नहीं चूक रहे हैं।
स्टॉक लेने भी अरुचि
देश में कोयले के संकट के बीच बिजली संकट गहराने की आशंका के बीच कोयला मंत्रालय ने ये तक कह दिया है कि वे राज्यों को जनवरी से पत्र लिखकर स्टॉक लेने के लिए कह रहा था, लेकिन राज्यों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। बकाए के बावजूद राज्यों को कोयले की आपूर्ति लगातार की गई है। कोयला मंत्रालय ने बताया है कि मप्र के अलावा झारखंड, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के पास भी कोयले की खदानें हैं, लेकिन इन राज्यों ने बहुत कम मात्रा में खनन किया या नहीं किया।
संकट इसलिए भी
कोयला मंत्रालय ने स्पष्ट कहा है कि राज्यों द्वारा कोयले का खनन न करने और कोल इंडिया से कोयला न लेने के कारण भी बिजली संकट गहराने की स्थिति बनी है। कोयला मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि कोयले का अत्यधिक भंडारण इसलिए नहीं कर सकते क्योंकि आग लगने का खतरा है।
आयातित कोयला महंगा होने से बिगड़ी स्थिति
देश में कोयले के संकट का एक कारण आयातित कोयले का महंगा होना है। एक रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2021 में आयातित कोयले की कीमत 4200 रुपये टन थी जो सितंबर अक्तूबर में बढ़कर 11,520 रुपये टन हो गई। इससे भी बिजली उत्पादन की व्यवस्था लड़खड़ाई है। केंद्र ने कहा है कि अगले पांच दिनों में वे कोयले का उत्पादन 1.94 लाख टन से बढ़ाकर 20 लाख टन करेगा।
इधर हो रहे जमीनों के सौदे
सूत्रों का कहना है कि छिंदवाड़ा, परासिया, पेंच आदि स्थानों पर स्थित कोयला खदानों से लगी बेशकीमती जमीन भू माफियाओं की नजर चढ़ी हुई हैं। कर्मचारियों के क्वार्टर इनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी खाली नहीं हो पा रहे हैं। अधिकारियों के पास मौजूद बड़े वर्गफल के क्वार्टर और बंगलों से लेकर खाली प्लॉट तक अवैध कब्जों से घिरे हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि कोयला खदान क्षेत्रों में पिछले कुछ समय से निजी बिल्डर्स और भूमाफियों का दखल भी तेजी से बढ़ा है। जिन्हें प्रबंधन के अधिकारियों ने औने पौने दाम पर बेशकीमती जमीनें बेच डाली हैं।
प्रबंधन का तर्क, अभी नए हैं
छिंदवाड़ा और इसके आसपास स्थित खदानों के प्रबंधन से लेकर नागपुर मुख्यालय तक के अधिकारियों का एक सीधा सा तर्क है कि जो पहले हुआ, उसकी उन्हें जानकारी नहीं है। जबकि उनके कार्यकाल में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है। जबकि प्रबंधन में बैठे अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे वर्तमान हालात के साथ पिछली परिस्थितियों की जानकारी भी रखें और कोई भ्रष्टाचार सामने आए तो उसकी शिकायत भी करें।
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