रेवड़ियों की बहार : तकते रह गईं मुस्लिम संस्थाएं, सभी चल रहे प्रभारियों के भरोसे

✍️खान आशु 


भोपाल।
लंबे इंतजार के बाद प्रदेश में निगम मंडलों में नियुक्ति के योग बन पाए हैं। चुनाव से चंद कदम दूर खड़ी शिवराज सरकार ने संघ, संगठन, सिंधिया और खुद की पसंद के लोगों को समायोजित कर दिया है। लेकिन इस बीच लंबे समय से सरकारी अधिकारियों और प्रभारी जिम्मेदारों के भरोसे चल रही मुस्लिम संस्थाएं अब भी नियुक्तियों से खाली हैं। ओहदेदारों की गैरमौजूदगी के चलते यहां कई जरूरी और नीतिगत कार्य रुके हुए हैं।

मप्र वक्फ बोर्ड करीब तीन साल से खाली है। यहां शौकत मोहम्मद खान की अध्यक्षता वाली कमेटी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद से नए बोर्ड का गठन नहीं हो पाया है। नतीजा अरबों रुपए की संपत्ति वाले इस बोर्ड की कमान प्रभारी अधिकारियों के जिम्मे है। वर्तमान में एडीएम दिलीप यादव यहां प्रशासक के तौर पर काम देख रहे हैं। जबकि सीईओ की जिम्मेदारी यहां के एक बड़े बाबू के हवाले है। 

अकीदत का सफर पूरा कराने में मदद करने वाली राज्य हज कमेटी में पिछले दो शासनकाल में नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं। कमलनाथ की डेढ़ साल की सरकार के दौरान यहां सदस्यों की नियुक्तियां जरूर हुई थीं, लेकिन इस कमेटी के आकार लेने से पहले ही सरकार धराशाई हो गई। तब से यहां की व्यवस्था भी प्रभारी सीईओ के हवाले चल रही है। कमेटी गठित न होने के चलते यहां हज यात्रा को लेकर कई मुश्किलों के हालात बने रहते हैं।

मुस्लिम समुदाय की समस्याओं को सुनने और उनके समाधान की सिफारिश सरकार को भेजने वाला राज्य अल्पसंख्यक आयोग भी लंबे समय से खाली है। कांग्रेस शासनकाल में पद से निवृत्त हुए अध्यक्ष नियाज़ मोहम्मद खान के बाद यहां महज एक सदस्य नूरी खान की नियुक्ति हुई है। लेकिन कांग्रेस नेत्री की इस नियुक्ति को भी भाजपा ने अदालत में चुनौती दे रखी है। जिसके चलते यहां की व्यवस्था भी प्रभारी अधिकारी के भरोसे चल रही है।

मुस्लिम बच्चों को आसान शिक्षा देने वाला मप्र मदरसा बोर्ड भी इन दिनों खाली है। सैयद इमाद उद्दीन के अध्यक्ष पद से हटने के बाद यहां नई नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं। नतीजा यह है कि बोर्ड से न समय पर परीक्षाएं हो पा रही हैं और न शिक्षा को लेकर किसी योजना को आगे बढ़ाया जा पा रहा है। प्रभार के तौर पर काम देख रहे एसएच रिजवी की मूल पदस्थापना लोक शिक्षण संचालनालय में है, जिसके चलते वे न तो कभी मदरसा बोर्ड कार्यालय पहुंच पाते हैं और न ही बोर्ड के बेहतर भविष्य के लिए किसी योजना पर काम कर पाते हैं।

खालीपन यहां भी

भोपाल रियासत (भोपाल, रायसेन, सीहोर जिले) की मस्जिदों की देखरेख करने वाली मसाजीद कमेटी का कार्यकाल खत्म हुए भी करीब डेढ़ साल हो चुका है। लेकिन ओहदेदारों की नियुक्ति न हो पाने से यहां को व्यवस्थाएं भी प्रभारी के जिम्मे हैं। इसी तरह भोपाल जिले की वक्फ संपत्तियों की निगरानी करने वाली जिला मुतावल्ली कमेटी भी इन दिनों खाली है, जिसमें नियुक्तियां होना है।

उर्दू अकादमी हो संस्कृति की

मप्र उर्दू अकादमी का अस्तित्व सिमटकर अब संस्कृति विभाग में पहुंच चुका है। ऐसे में यहां ओहदेदारों की नियुक्ति के रास्ते लगभग बंद हो चुके हैं। अकादमी की व्यवस्था अब संचालक डॉ नुसरत मेहदी के हाथों में है।

कई विभागों के बंटे अल्पसंख्यक

कहने को ये संस्थाएं मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखती हैं लेकिन इनकी व्यवस्था महज अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में न होकर अलग अलग विभागों में बंटी हुई है। मप्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग, मप्र वक्फ बोर्ड, राज्य हज कमेटी, मसजिद कमेटी, मुतावल्ली कमेटी अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधीन हैं तो मप्र मदरसा बोर्ड की कमान शिक्षा विभाग के पास हैं। मप्र उर्दू अकादमी का जिम्मा अब संस्कृति मंत्रालय के हवाले हो चुका है।

अरमान कई लेकर बैठे

निगम मंडलों में नियुक्तियों की खबरों के साथ कई अल्पसंख्यक और मुस्लिम नेताओं के अरमान जागे हुए हैं। बरसों से भाजपा की सेवा कर रहे मिर्जा जाफर बेग, कलीम अहमद बच्चा, सलीम कुरैशी, एसके मुद्दिन, इनायत हुसैन कुरैशी, डॉ सनव्वर पटेल, हिदायत उल्लाह शेख, शौकत मोहम्मद खान, आगा अब्दुल कय्यूम खान जैसे कई मुस्लिम नेता इनमें शामिल हैं।


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