अमीरुल मोमिनीन हज़रत अबू बक्र सिद्दीक का मनाया गया उर्स-ए-मुक़द्दस


गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
मुसलमानों के पहले खलीफ़ा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना अबू बक्र सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहु अन्हु का उर्स-ए-मुक़द्दस मदीना मस्जिद रेती चौक, नूरी जामा मस्जिद अहमदनगर चक्शा हुसैन, सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाज़ार, चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर, मस्जिद खादिम हुसैन तिवारीपुर आदि में अदबो एहतराम के साथ मनाया गया।

हज़रत अबू बक्र की ज़िंदगी के हर पहलू पर उलमा-ए-किराम ने रोशनी डाली। क़ुरआन की तिलावत हुई। नात व मनकबत पेश की गई।


मदीना मस्जिद में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि हज़रत अबू बक्र सिद्दीके़ अकबर रदियल्लाहु अन्हु मुसलमानों के पहले ख़लीफा हैं। आप पैग़ंबरों के बाद इंसानों में सबसे अफ़ज़ल हैं। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद ख़लीफा के रूप में आपको चुना गया। आप सबको समान दृष्टि से देखते थे। 

कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने कहा कि अल्लाह के रास्ते में हज़रत अबू बक्र दिल खोल कर खर्च करते थे। आपने बेशुमार गुलामों को खरीद कर आज़ाद किया। जिनमें पैग़ंबर-ए-आज़म के मुअज़्ज़िन हज़रत सैयदना बिलाल भी शामिल हैं। आपने पैग़ंबर-ए-आज़म की ज़िंदगी में उनके हुक्म से 17 वक्तों की नमाजें पढ़ाईं। इंतक़ाल के दिन पैग़ंबर-ए-आज़म ने आपके साथ मिलकर नमाज़े फज्र की इमामत की। पैग़ंबर-ए-आज़म ने आपको सफ़र-ए-हज के लिए सहाबा-ए-किराम का अमीर-ए-लश्कर बना कर भी भेजा।


सब्जपोश हाउस मस्जिद में नायब क़ाज़ी मुफ्ती मो. अज़हर शम्सी ने कहा कि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ अरब के मशहूर और अमीर दौलतमंद लोगों में शुमार किए जाते थे। दीन-ए-इस्लाम में दाखिल होने के वक़्त आपका शुमार मक्का के बड़े बिजनेसमैन में होता था। आपने सारी दौलत अल्लाह के रास्ते में लगा दी। यहां तक कि इंतक़ाल के वक़्त कोई क़ाबिले ज़िक्र चीज़ आपके पास मौजूद नहीं थी। आपको अल्लाह ने पाकीज़ा व उम्दा अखलाक से नवाजा था। आपने तन, मन, धन से दीन-ए-इस्लाम की खिदमत की।

हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने कहा कि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ की मेहनत से बेशुमार सहाबा-ए-किराम ने दीन-ए-इस्लाम अपनाया। जिनमें मुसलमानों के तीसरे खलीफा हज़रत उस्माने गनी, हज़रत ज़ुबैर, हज़रत अब्दुर्रहमान, हज़रत तल्हा और हज़रत साद काबिले जिक्र हैं। 

चिश्तिया मस्जिद में हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने कहा कि हज़रत अबू बक्र ने पूरी ज़िंदगी दीन-ए-इस्लाम का परचम बुलंद करने में लगा दी। आपकी साहबज़ादी हज़रत आयशा से पैग़ंबर-ए-आज़म ने निकाह किया। पैग़ंबर-ए-आज़म के साथ आपने मदीना की तरफ हिजरत किया। क़ुरआन-ए-पाक की आयतों में आपका ज़िक्र है। आपका 13 हिजरी में इंतक़ाल हुआ। हज़रत आयशा के हुजरे में पैग़ंबर-ए-आज़म के पहलू में दफ़न हुए। आपकी उम्र तक़रीबन 63 साल और खिलाफत 11 हिजरी से 13 हिजरी तक दो साल तीन महीने दस दिन रही। मुसलमान मदीना जाकर आपकी बारगाह में अकीदत का सलाम जरूर पेश करते हैं।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। उर्स में गौसे आज़म फाउंडेशन के जिलाध्यक्ष समीर अली, हाफ़िज़ मो. अमन, मो. फैज़, रियासत अली, रियाज अहमद, सैफ हाशमी, मो. जैद, अफ़रोज़ क़ादरी, हाफ़िज़ अलकमा, क़ासिद रज़ा इस्माईली, हाजी बदरुल हसन, हाजी सलीम, मो. समीर, मो. राजिक, मौलाना मकबूल, हाफ़िज़ सैफ, असलम, हाफ़िज़ शारिक, बब्लू, अखलाक, महबूब आलम, चांद अली, समीर, तारिक अली, शादाब अहमद, सैफ अली, नूर अहमद, अफ़ज़ल बरकाती, मो. दानिश, दारैन हैदर, हाशिम अली आदि ने शिरकत की।

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