गोगावा वाले महमूद सेठ : यादें बाकि... मुझको मेरे बाद ज़माना ढूँढेगा


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ल्कुल भी नहीं लग रहा था कि आप हम सब को छोड़कर चले जाएंगे अभी हाल ही में तो हम 1 जनवरी 2022 को नालछा ज़िला धार में हज वेलफेयर सोसायटी के खिदमतगार इजलास में शामिल हुई गोगांवा ज़िला खरगोन की नामी गिरामी शख़्सियत हाजी महमूद सेठ अब हमारे बीच नही हैं.. 01 जुलाई 1946 को पैदा हुए सेठ 04 फरवरी 2022 को इस दार ए फानी से विदा हो गए.. नालछा इजलास में मुझे देखते ही कांधे पर हाथ रखते हुए उनके कहे गए दो लफ्ज़ उनके नही रहने के बाद भी हमेशा हौसले देते रहेंगे, बोले "तुम्हारी मोहब्बत खींच लाई नही तो हिम्मत नही हो रही थी" उनसे जब-जब मुलाकात हुई हमेशा कांधे पर हाथ रखकर खामोशी से यह कहना कि " इसी तरह ख़िदमत करते रहो " बहुत याद आता रहेगा.. एक जनवरी को नालछा इजलास में उन्होंने जब भी मुस्कुराने की कोशिश की उनके अंदर का दर्द आंखों के ज़रिए से आँसू की शक्ल में बाहर आता रहा, 01 नवम्बर 2021 को बेटे कमरुद्दीन की मौत ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया, कमरुद्दीन अपने पीछे एक लड़का और चार लड़कियाँ छोड़ गए.. इतना बड़ा गम भला कोई बाप कैसे बर्दाश्त कर सकता है.. महमूद सेठ जैसी शख़्सियत जो हमेशा लोगों के दुख दर्द में एक पैर पर खड़े रहै.. मरीज़ों के लिये तो पहले वही डॉक्टर थे.. मरीज़ों को बड़े-बड़े शहरों के हॉस्पिटल ले जाकर उनका इलाज कराना.. उन्हें हर तरह की सरकारी मदद मुहैया कराना.. गरीब लोगों के इलाज के लिये खर्च का इंतज़ाम करना, करवाना, मरीज़ों के साथ हॉस्पिटल में रहना उनका मशगला रहा.. ख़िदमत के हर शोबों में उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी सर्फ कर दी उनके नुमाया कामों को हमेशा याद रखा जाएगा.. सोसायटी से जुड़ें गोगांवा के साथी मोहम्मद हुसैन खान बताते हैं मरीज़ों को इलाज के लिये इंदौर या दीगर शहरों में ले जाने की वजह से वे अक्सर सफ़र में रहा करते थे.. कितनी ही बार दूसरों के इलाज के लिये जेब से ही खर्च कर देते थे..

मध्यप्रदेश हज वेलफेयर सोसायटी की सलाहकार समिति के सरगर्म सदस्य महमूद सेठ कांग्रेस के कद्दावर नेता थे..आप 1984-85 में ब्लॉक कांग्रेस के नायब सदर रहै, पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता होने की वजह से मरहूम सुभाष यादव जी, दिग्विजयसिंह जी से उनके गहरे ताल्लुकात रहै.. सेठ के मशवरों पर तवज्जो भी दी जाती थी और उस पर अमल भी किया जाता था, खण्डवा के खिदमतगार मरहूम हारून सेठ से वे काफी मुतास्सिर थे उन्हें अपना उस्ताद मानते थे.. सुभाष यादव के बेटे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और विधायक सचिन यादव उन्हें काका कहकर खिताब किया करते थे.. दोनो भाई, सेठ के इन्तिक़ाल हो जाने के बाद उनके घर बैठने भी गए ..कुर्ता पाजामा पहने और कांधे पर हमेशा गमछा रखने वाले महमूद सेठ हर वक्त चेहरे पर मुस्कान लिये लोगों से मिलते थे.. हर उम्र के लोगों से मिलने का उनका अंदाज़ निराला था.. 

साल 2009 में हमारे साथ इंदौर एयरपोर्ट पर हाजियों की ख़िदमत में भी रहै.. एक दिन में कहीं जगह ख़िदमत करने वाले महमूद सेठ उन दिनों भी किसी मरीज़ को इंदौर लाए थे, बोले हॉस्पिटल से थोड़ा वक्त मिल गया तो हाजियों की ख़िदमत के लिये आ गया.. हाजियों के तरबियती कैम्पों में भी सेठ को पेश-पेश देखा गया.. वे सामाजी कामों में खुशी-खुशी हिस्सा लेते थे..

महमूद सेठ आज हमारे बीच नही हैं लेकिन वे सदा दिलों में जिंदा रहेंगे उनकी जानिब से हमेशा दी जाने वाली दुआएँ और हौसला अफ़ज़ाई ख़िदमत के कामों में हमें आसानियाँ मुहैय्या कराती रहेगी.. सोसायटी अपने आइन्दा के इजलास में ख़िदमत के मैदान में अपनी ज़िंदगी सर्फ करने वाली मध्यप्रदेश सूबे की किसी एक शख़्सियत को हाजी महमूद सेठ मेमोरियल अवार्ड देकर नवाज़ेगी.. इन्शा अल्लाह 

(-जैसा कि ऑल इण्डिया हज वेलफेयर सोसायटी के चैयरमेन मुकीत खान ने पत्रकार सैयद रिजवान अली को बताया।) 


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