"पंख से कुछ नहीं होता हौसले से उड़ान होती है, मनीषा डाबर ने सिद्ध किया की मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है"


  • जीवन में संघर्ष करते हुए निट की परीक्षा की उत्तीर्ण
  • मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए पिता को बेचना पड़ेगी बाइक

✍️ विश्व दीप मिश्रा 

मनावर धार। "मंजिल उन्हीं को मिलती है ,जिनके सपनों में जान होती है। पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।" किसी शायर की यह लाइने बहुत लोगों ने पढ़ी और सुनी होगी। लेकिन मनावर तहसील के छोटे से ग्राम बापडूद की आदिवासी किशोरी मनीषा डावर ने इसे खूब ठीक से समझा है और साबित कर दिया है कि हौसले के दम पर आसमान भी हासिल हो सकता है। दृढ़ संकल्प परिश्रम और हिम्मत की मिसाल बनी मनीषा ने आर्थिक तंगी और गरीबी से संघर्ष करते हुए कठिन नीट की परीक्षा उत्तीर्ण की है। अब एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए उनका चयन शिवपुरी मेडिकल कॉलेज के लिए हुआ है।

करीब 700 से 800 आबादी वाले छोटे से ग्राम बापडूद में अधिकांश खेतिहर मजदूर निवास करते हैं।आर्थिक रूप से काफी कमजोर मनीषा के पिता गजानन डावर के पास मात्र 3 बीघा जमीन है। जिससे उनके 3 बच्चों सहित परिवार का गुजर-बसर बमुश्किल होता है। पिता 12वीं तक पढ़े हुए हैं जबकि माता ग्रहणी हैं।

बच्चों को उच्च शिक्षित कर अपने सपने कर रहे पूरे

 पिता गजानन बताते हैं कि उन्हें पढ़ने का बड़ा शौक था ।लेकिन आर्थिक मजबूरियों और परिवार की जिम्मेदारियों के चलते वह उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर सके। मन में आगे पढ़ने की एक कसक सी रह गई थी। अपनी इसी कसक को पूरा करने के लिए बच्चों को उच्च शिक्षित कर रहे हैं।बच्चों की शिक्षा के लिए कभी भी आर्थिक पक्ष को आड़े नहीं आने दिया। खेती व अन्य समय में मजदूरी करके बच्चों को जैसे-तैसे पढ़ा रहे हैं ।बेटा शोभाराम जहां एमबीए की तैयारी कर रहा है। वही छोटी बेटी बायोलॉजी विषय लेकर 11 वीं में अध्ययनरत है।

शिक्षा का कोई माहौल नहीं आर्थिक तंगी के चलते मजदूरी को विवश बालिकाएं 

मनीषा डावर ने बताया कि हमारे ग्राम में शिक्षा का कोई माहौल नहीं है।ग्राम की कई बालिकाएं मेरी तरह पढ़ना चाहती है ।लेकिन अधिकांश परिवार गरीब होने से आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई छोड़ कर अपने परिवार का हाथ बटाने और मजदूरी करने पर विवश है।मेरे स्वयं के परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के चलते यहां तक पहुंचने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन मेरा सपना था कि पढ़ लिखकर में चिकित्सक बनू और ग्रामीण क्षेत्र में  अपनी सेवाएं देकर ग्रामीणों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें बीमारियों से मुक्त कर पाऊं।

बाइक बेच कर पिता भरेंगे बेटी की फीस 

पिता गजानन ने बताया कि बच्चों की पढ़ाई के लिए वे दिन-रात परिश्रम कर रहे हैं । सभी बच्चों को योग्य बनाएंगे। मनीषा के एडमिशन के लिए रुपए60 हजार लग रहे हैं। मैंने फैसला किया है कि अपनी बाइक बेच कर बेटी की फीस के लिए रुपए जुटाएंगे । जैसे भी होगा हम हमारी बेटी का सपना पूरा करने में किसी प्रकार की कसर नहीं छोड़ेंगे।

मनीषा जैसी प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने के लिए क्या कोई हाथ आगे बढ़ेगा

मेधावी और प्रतिभाशाली विद्यार्थियों खासकर बेटियों के लिए जहां सरकार सहित कई एनजीओ और व्यक्ति सहायता की बात करते हैं क्या बापडूद जैसे छोटे से ग्राम से शिक्षा की अलख जगाने वाली मनीषा की पढ़ाई के लिए आर्थिक सहायता के लिए कोई व्यक्ति या संगठन आगे आ पाएगा। यदि मनीषा जैसी प्रतिभाशाली बालिका को इस प्रकार की कोई मदद मिल जाती है तो आज उसके पिता को उसके एडमिशन के लिए अपनी बाइक नहीं बेचना पड़ेगी।

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