मंच के पीछे... किसी भी नाटक की आत्मा होता है संगीत : वानखेड़े


भोपाल।
किसी भी इंसान का वजूद बिना आत्मा के नहीं हो सकता। वैसे ही किसी नाट्य प्रस्तुति में संगीत का महत्व है। संगीत के बिना किसी भी बात को दर्शकों तक पहुंचा पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव जैसा है। संगीत का उतार चढ़ाव वातावरण को स्पष्ट और बात को मुकम्मल करने का माध्यम है।

यामनी कल्चरल एंड वेलफ़ेयर सोसाइटी के 3 दिवसीय फुलकारी नाट्य समारोह के दूसरे दिन नाट्य संगीत पर वरिष्ठ संगीत निर्देशक सुरेन्द्र वानखेड़े ने अपने विचार रखे। इस 1 घंटे के चर्चा में यामनी कल्चरल एंड वेलफ़ेयर सोसाइटी के अध्यक्ष रवि, युवा निर्देशक प्रदीप अहिरवार, सीमा मोरे, मोहम्मद फैज़ान, हरीश शर्मा, अदनान खान, रमेश अहिरे, विवेक त्रिपाठी, दया निधि मोहन्ता आदि युवा रंगकर्मी उपस्थित हुए। सुरेन्द्र वानखेड़े ने बताया कि जिस तरह से नाटक में डायलॉग, बैकस्टेज, कॉस्ट्यूम, मेकअप जरूरी होता है, वैसे ही नाटक का एक हिस्सा संगीत भी होता है। संगीत से नाटक को आगे बढ़ाने में सहायता मिलती है। जैसे नृत्य नाट्य प्रस्तुति में संगीत होता है क्योंकि उसमें संगीत के साथ नाटक आगे बढ़ता है और पूरा नृत्य नाटक संगीत की धुन पर होता है। उसी तरह नाटक में संगीत होता है, जिससे नाटक का अलग स्वरूप सामने आता है। यामनी कल्चरल एंड वेलफ़ेयर सोसाइटी की सचिव सीमा मोरे ने संगीत निर्देशक सुरेन्द्र वानखेड़े का सम्मान किया। फुलकारी नाट्य मोहत्सव की तीसरे दिन गुरुवार को शहीद भवन में नाटक पंचवटी की प्रस्तुति होगी। इसका निर्देशन हरीश शर्मा करेंगे।

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