हमीदिया अस्पताल, जहां नहीं किसी को दर्द का अहसास, भटकने पर मजबूर मरीज
भोपाल। शहर का सबसे बड़ा अस्पताल हमीदिया, कहने को तो मॉडल अस्पताल कहा जाता है, लेकिन यहां समय पर इलाज मिलना चुनौती से कम नहीं। इसका नजारा उस समय देखने को मिला, जब ऐशबाग इलाके का 14 साल का लड़का खेलते समय गिर गया और इलाज के लिए पहुंचा। डेढ़ घंटे तक इधर से उधर भटकने के बाद जैसे-तैसे डॉक्टर मिले, तो ड्यूटी डॉक्टर की लापरवाही भी देखने को मिली। ड्यूटी डॉक्टर ने कंपाउंडर या खुद ही पट्टी निकालने के बजाय बच्चे की मां से ही पट्टी निकलवाई। मामले में हमीदिया अस्पताल के पीआरओ से बात की, तो उन्होंने डॉक्टर से बात करने का आश्वासन देते हुए फोन काट दिया। इसके बाद कॉल रिसीव नहीं किया।
जानकारी के मुताबिक असलम (14) परिवार के साथ अल सुबह तीन बजे सहरी करने उठा था। इसके बाद दोस्तों के साथ खेलने लगा। इसी दौरान पैर फिसल गया। सिर में चोट आई। सुबह हमीदिया अस्पताल की ओपीडी खुलते ही उसकी मां शबनम अस्पताल ले आई। गंभीर चोट के साथ करीब डेढ़ घंटे भटकने के बाद असलम को इलाज मिला।
ऐसे बने हालात
सुबह 9:30 बजे:- शबनम अपने बेटे के साथ हमीदिया पहुंची। अंदर घुसते ही बाएं हाथ की तरफ ओपीडी में कतार देख बच्चे ने मां का हाथ पकड़ा। दूसरे हाथ से चोट को ढंका। मां ने ओपीडी में महिलाओं के लिए आरक्षित खिड़की पर पहुंचकर पर्ची बनवाई। काउंटर के पीछे बैठे शख्स ने ENT की पर्ची काटकर पुरानी बिल्डिंग के फर्स्ट फ्लोर पर भेज दिया।
10 बजे : शबनम फर्स्ट फ्लोर पर पहुंची। यहां मौजूद गार्ड ने ENT में भेजा। यहां मौजूद ड्यूटी डॉक्टर ने सर्जरी डिपार्टमेंट में भेज दिया, जबकि पर्ची ENT की थी।
10:15 बजे : एक बार फिर शबनम ने इमरजेंसी वार्ड में जाकर सर्जरी विभाग के बारे में पूछा। गेट पर खड़ी महिला स्टाफ ने फर्स्ट फ्लोर पर प्लास्टिक सर्जरी विभाग में भेज दिया। वहां बैठे कर्मचारी ने फिर वापस लौटा दिया। उसने अगली बिल्डिंग में भेज दिया। यहां कर्मचारी ने कहा कि दूसरी पर्ची बनवाकर लाओ।
अब वापस पर्ची बनवाने गई- यहां से शबनम वापस ओपीडी पहुंची। अब वह पुरानी पर्ची में सुधार वाली खिड़की पर गई। वहां उसने गलत पर्ची बनाने की बात बताई, तो वह उल्टा उसे ही जिम्मेदार ठहराने लगा। मौजूद कर्मचारी ने दूसरी पर्ची बना दी। पर्ची लेकर शबनम वापस नई बिल्डिंग के फर्स्ट फ्लोर पर पहुंची।
10.40 बजे : यहां कम्प्यूटर के पीछे बैठी कर्मचारी को पर्ची दिखाते हुए पूछा। युवती ने पर्ची पर स्टाम्प लगाकर गार्ड के पास भेज दिया। इसके बाद महिला गार्ड शबनम को ड्यूटी डॉक्टर डॉ. इशिता के पास ले गई। यहां डॉक्टर ने खाने की बात कहकर बाहर बैठा दिया। कुछ देर बाद अंदर बुलाया।यहां डॉक्टर ने शबनम से ही सिर पर बंधी पट्टी हटाने के लिए कहा। डॉक्टर ने जख्म देख कर पर्ची पर कुछ लिखा। बच्चे को शबनम के साथ इंटर्न के हवाले कर नीचे पहुंचा दिया।
11 बजे:- इंटर्न ने कैजुअल्टी में खड़े कंपाउंडर को बच्चे की पर्ची दी। बोला कि टांके लगा देना। कंपाउंडर ने बच्चे को बेड पर लिटा दिया। उसके जख्म पर एंटीसेप्टिक छिड़का। कंपाउंडर ने सुई निकालने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, तो उसने देखा, सुई नहीं। कहने लगा- ये ट्रॉमा सेंटर वाले फिर सुई ले गए। शबनम ने पूछा- यहां उपकरणों कमी है क्या? कम्पाउंडर बोला- हां और नहीं तो क्या। इस दौरान बच्चा दर्द से तड़पता रहा।
सुई का बंदोबस्त कर कंपाउंडर ने टांके लगाए। इस दौरान एक शख्स बुजुर्ग को लेकर घुस गया। बोला- पहले इसकी पट्टी करो। कम्पाउंडर ने उसे बाहर भेजा। युवक ने बुजुर्ग को वहीं बैठा दिया। मजबूरन कम्पाउंडर बुजुर्ग को बाहर ले गया और पट्टी करने लगा। इतने में असलम अधूरे टांकों के साथ लेटा रहा।
11.30 बजे:- कुछ देर बाद कम्पाउंडर बच्चे को टांका लगाने वापस आया। बिना सुन्न किए बच्चे का सिर सिल दिया। इस दौरान बच्चा दर्द से चिल्लाता रहा। आखिर में डेढ़ घंटे की मशक्कत के बाद इलाज हो सका।
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