अकीदत की बाल हठ : किसी ने की रोजे की शुरुआत, किसी ने पूरे रख लिए

भोपाल।
बचपन में पड़े हुए बेहतर संस्कार ही जिंदगी को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होती हैं। माह ए रमजान भी एक ऐसा महीना है, जिससे बच्चों को रोजा, नमाज, तिलावत, सखावत, सब्र और शुक्र का सबक मिलता है। उम्र की एक तयशुदा सीमा के साथ रोजा रखने की अनिवार्यता शुरू होती है। लेकिन घर में अकीदत के माहौल को देखकर छोटे बच्चों में भी जोश ए इबादत जागता है और वे जिद के साथ अपनी जिंदगी के इबादत वाले चेप्टर को शुरू कर देते हैं।

फाजिल की रोजा कुशाई


फैसल हाशमी के बेटे फाजिल अपनी रोजा कुशाई से बहुत खुश नजर आए। रोजा इफ्तार दावत के दौरान फाजिल को मिल रही दुआओं ने उनके आत्मविश्वास को बढ़ा दिया। खुशी से लबरेज फाजिल कहते हैं कि वे हर साल रोजे रखेंगे। इस इफ्तार दावत में हाशमी परिवार के करीबी रिश्तेदार, दोस्त और पत्रकार साथी मौजूद रहे। 

अकीदत का बेहतर परफॉर्मेंस 


फाजिल खान और आयशा की बेटी अलिजा फिलहाल सात बरस की है। अक्लव्य इंटरनेशनल स्कूल की थर्ड क्लास स्टूडेंट अलिजा ने इस माह ए रमजान में अपनी अकीदत का बेहतर परफॉर्मेंस दिया। एक रोजा रखने की परमिशन लेकर उसने अपना इबादत वाला खाता खोला और जब शुरुआत हुई तो उसने माह के पूरे 30 रोजे रखकर ही अल्लाह का शुक्र अदा किया। बड़े हुए तापमान के बीच भूख प्यास की शिद्दत को बर्दाश्त करते हुए अलिजा अपनी क्लासेस भी अटेंड करती रहीं। रमजान माह के अलविदा पर अलिजा कहती हैं कि बहुत अच्छा लगता है, जब भी घर के बड़ों के साथ अकीदत वाले कामों को करते हैं। कहती हैं कि अब शुरुआत हुई है तो ये सिलसिला हर साल निरंतर जारी रहेगा।


दस्तरख्वान की रौनक में डूबे अली और इब्राहिम

हर शाम सजने वाला इफ्तारी का दस्तरख्वान छोटे बच्चों के लिए खाने से ज्यादा खेलने का साधन बन गया था। खानपान के कई आइटम्स, गिलासों में चमकता रूह अफज़ा और रंग बिरंगे फ्रायम्स अली और इब्राहिम पूरे माह लुभाते रहे। मैने भी रोजा रखा है फ्रिज में, के संवाद के साथ वे हर शाम सिर पर टोपी सजाए दस्तरख्वान वाली दुआ में शामिल होकर अपनी अकीदत दिखाई में लगे रहे। मासूम इब्राहिम अभी ठीक से रोजा, इफ्तार, नमाज के मायने नहीं जानते, लेकिन हर शाम नजर आने वाली एक बरकतों वाली बैठक के मुरीद भी हो गए और आदी भी। अपनी मासूम अदाओं के साथ घर के बड़ों को रोजे की आखिरी वक्त की थकान मिटाने में उन्होंने बड़ा सहयोग किया।


अब हर बरस रखेंगे रोजा

अनम और अलिफ ने अपने अकीदत के सफर की शुरुआत इस रमजान से की है। पहली बार के रोजे के लिए उन्हें पूरे दिन की निगरानी से गुजरना पड़ा। लेकिन शाम होने तक मिलने वाली घर के सभी लोगों की तवज्जो और तारीफ ने उन्हें कॉन्फिडेंस से भर दिया। अनम और अलिफ ने अब हर रमजान रोजा रखने का इरादा मजबूत कर लिया है।


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