सिंगापुर-पेरिस बनाने की नीयत नहीं, भोपाल को भोपाल बनाना है : रईसा मलिक


  • राजधानी की निर्दलीय महापौर प्रत्याशी ने विकास को बताया अपना एजेंडा

✍️ राजनीतिक संवाददाता 

भोपाल। कांच की तरह चमकती सड़कें या आसमान से बात करते शॉपिंग मॉल मेरी प्राथमिकता नहीं, बल्कि शहर को वह मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने की नीयत है, जिससे एक आम इंसान की जिंदगी सुकून से गुजर सके। बड़ी पार्टियों के बड़े वादे और दावे हवा होते लोग देखते आए हैं, अब एक मौका उन हाथों में देने की तरफ कदम बढ़ाया जाना चाहिए, जो हर जरूरतमंद की मदद और शहर की हर छोटी बड़ी मौलिक जरूरत पूर्ति के लिए जन के साथ खड़ा हो सके।

राजधानी भोपाल से आजाद उम्मीदवार के तौर पर महापौर प्रत्याशी रईसा मलिक ने अपनी प्राथमिकताएं गिनाते हुए ये बात कही। उन्होंने कहा कि किसी को भी विकास और काम की बानगी देखना हो तो वह पुराने शहर के वार्ड 22 पर एक नजर डाल सकता है। दो बार पार्षद रहते हुए उन्होंने इस क्षेत्र में जो काम किए हैं, उन्हें वे अपनी जिम्मेदारी और जनता के प्रति अपना दायित्व बताती हैं। रईसा कहती हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल में विकास को सर्वोपरि रखकर काम किया। जनता की हर छोटी बड़ी जरूरत और मांग को पूरा करवाने के लिए उन्होंने परिषद से लेकर प्रदेश सरकार तक कोशिशें की और इनमें कामयाबी पाई है।

पुराने शहर से दोगलापन नहीं चलेगा

रईसा मलिक कहती हैं कि दो हिस्सों में बंटे इस शहर में विकास की दो विचारधाराएं नहीं चलेंगी। जिस तरह नए भोपाल में सड़क, पानी, बिजली और अन्य मूलभूत सुविधाओं की गंगा बहाई जाती है, वही सब सुविधाएं पुराने शहर का भी अधिकार हैं, जिन्हें वे महापौर बनने पर पूरा करेंगी। शहर की अवैध बस्तियों के वैध किए जाने से लेकर गरीब व्यक्ति को राशन मिलने में होने वाली समस्याओं पर उनका खास फोकस रहेगा। रईसा कहती हैं कि बिना दबाव और झुकाव की महापौर होना शहरवासियों के लिए सुविधाओं के नए रास्ते तय करेगा।

पार्टी है, कोई ईमान थोड़ी है

एक पार्टी किसी समुदाय के पैगंबर को खुलेआम गाली देती है, उनकी नागरिकता समाप्त करने की बात करती है और उसके मजहबी मामलों में दस तरह के दखल देती है। दूसरी पार्टी इसी राह पर चलकर इस कौम को अपने साथ बैठाने से परहेज करती है, सियासत से उसकी भागीदारी को समाप्त करने की साजिश करती है और उसके बाद भी उससे 90फीसदी वोटों की उम्मीद लगाती है। उन्होंने कहा कि मौका है, अब लोगों को दिखाना होगा कि वे किसी पार्टी विशेष पर ईमान नहीं लाए हैं, जरूरत होगी तो वह अपना अगुआ अपने बीच से चुनेंगे और मजहब के नाम पर देश को बांटने वालों को उनका असली चेहरा दिखा देंगे।

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