अकीदत : युवाओं में बढ़ रहा हज को लेकर जोश, इस सफर में बुजुर्गों से ज्यादा युवा
- शिमला - मनाली से ज्यादा उत्साह उमराह के लिए
भोपाल। कोई समय हुआ करता था, जब दुनियादारी के सारे कामों से फारिग होने और तमाम जिम्मेदारियों से फारिग होने के बाद लोगों का सफर ए हज की तरफ रुख हुआ करता था। लेकिन पिछले कुछ सालों में युवाओं का रुझान हज और उमरा की तरफ बढ़ा है। इस साल हज पर जाने वालों में बुजुर्गों से ज्यादा तादाद युवाओं की दिखाई दे रही है।
प्रदेश हज कमेटी के मार्फत हज पर जाने वाले अधिकांश बुजुर्ग सऊदी अरब द्वारा तय आयु सीमा के बंधन के चलते सफर से वंचित हो गए हैं। ऐसे में प्रदेश से हज सफर पर जाने वाले करीब ढाई हजार हाजियों में युवाओं की संख्या अधिक दिखाई दे रही है। बताया जाता है कि पहले जहां हज पर जाने वाले युवाओं का आंकड़ा कुल यात्रियों की तादाद में इक्का दुक्का या छोटी मौजूदगी के तौर पर हुआ करता था, वहीं अब ये प्रतिशत पहले से ठीक विपरीत हो गया है।
बढ़ी पेइंग कैपिसिटी, अकीदत में भी इजाफा
सूत्रों का कहना है कि करीब एक दशक पहले और आज के दौर में होने वाले हज खर्च में करीब 5 गुना इजाफा हो चुका है। जहां वर्ष 2000 में प्रति हाजी महज 70=75 हजार रुपए खर्च हुआ करता था, वहीं अब ये खर्च 3 लाख रुपए से भी ज्यादा है। लेकिन युवाओं में शिक्षा, रोजगार और कारोबार में आई तब्दीली ने इस खर्च को वहन करने की क्षमता बढ़ा दी है।
भोपाल के रफीक, इंदौर के सतलज, देवास के संजीद...
इस हज सफर में युवाओं की बड़ी तादाद शामिल है। इनमें कुछ हज कमेटी के जरिए अपना सफर पूरा करेंगे तो कुछ ने निजी टूर ऑपरेटर्स को अपना सहारा बनाया है। भोपाल के रफीक अहमद, इंदौर के सतलज़ राहत, देवास के संजीद कुरैशी, शहनाज कुरैशी, शाजिया बी कहते हैं कि अकीदत के लिए उम्र की घड़ियां गिनने का दौर अब नहीं रह गया है। बेहतर है उम्र ढलने के साथ शुरू होने वाले बीमारियों के दौर से पहले हज अरकान पूरे कर लिए जाएं, ताकि इबादतों और उम्र के बीच बीमारियों और कमजोरियों की बाधा न आए। इनका कहना है कि हज अरकान पूरे करने के बाद व्यक्ति की जिंदगी अनुशासित हो जाती है और इंसान अनचाहे गुनाहों से बचने में भी कामयाब होता है।
तफरीह नहीं, उमराह सफर
आमतौर पर साल में एक बार किसी पर्यटन स्थल या लुभावनी जगह की सैर करने के चाहतमंद लोगों ने भी अपने रूटीन में कुल्लू मनाली या शिमला कश्मीर टूर को दरकिनार करना शुरू किया है। इसकी जगह अब वे सफर ए उमराह पर जाने को तरजीह देने लगे हैं। कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद और मप्र वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष शौकत मोहम्मद खान कहते हैं कि जितना खर्च किसी पर्यटन स्थल की तफरीह में होता है, उससे कम रकम में उमराह किया जा सकता है। तफरीह की तसल्ली और अकीदत का सुकून इसमें आसानी से मिल जाता है।
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