नया नाटक : सब धर्म को समान मानने के जुर्म में मिली सगों से दुश्मनी की सज़ा
- नफरत पर मुहब्बत की फतेह की जंग में दारा शिकोह को मिली शिकस्त
भोपाल। जिसको मुहब्बत का जुनून सवार हो जाए, उसे नफरत का वातावरण किसी कंटीले जंगल से भी ज्यादा भयावह लगता है। एक ईश्वर और सब उसके जन की कल्पना करने वालों के लिए भी धर्म विद्रोही का तमगा सदा तैयार रहा है। सदियों पुरानी ये परंपराएं आज के दौर में भी जीवंत हैं। मुहब्बत और आपसी भाईचारे की बातें करने वाले हमेशा से दुश्मनी की सलीब पर चढ़ाए जाते रहे हैं।
राजधानी के शहीद भवन में मंचित किए गए नाटक दारा शिकोह की कथा भी इसी धारणा पर केंद्रित थी। मुगल वंश के चश्म ओ चिराग दारा शिकोह ने जब मुहब्बत का अलख जगाने की कोशिश की तो उसकी राह कई मुश्किलें आ खड़ी हुईं। हर धर्म को ईश्वर तक पहुंचने का माध्यम करार दिया तो उसको धर्म विरोधी और काफिर करार दे दिया गया। सबको एक करने की चाहत में जुटे तो दारा शिकोह के अपने ही उसके इस हद तक दुश्मनी पर उतारू हुए कि उसको मौत के घाट उतारने को बड़ी कामयाबी मान बैठे। नफरत की आग यहां तक फैली के भाई के हाथों भाई का कत्ल करवा कर बहन उसके कटे हुए सिर को तोहफे से भी ज्यादा गौरव करार देने लगी।
अंजुम की ग़ज़लों, प्रदीप के निर्देशन, अदनान के अभिनय ने किया साकार
गैर अवकाशीय दिवस में भी दर्शकों से खचाखच भरे शहीद भवन में नाटक के हर अंश पर तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दे रही थी। मशहूर शायर अंजुम बाराबंकवी की कलम से उभरी नज़्म और गजलों ने ऐतिहासिक कथा को ऐसे पिरोया की श्रोताओं की वाहवाही भरी तालियां बार बार गूंजती रही। प्रदीप अहिरवार के मंजे हुए निर्देशन ने पूरे समय कसावट बनाए रखी। नाटक के किसी भी हिस्से में दर्शकों को उकताहट का अहसास न होने देने का जादू प्रदीप बखूबी जानते हैं और उन्होंने अपने इस कौशल का बखूबी इस्तेमाल भी किया। दारा शिकोह के व्यक्तित्व और किरदार को जीवंत करने की जिम्मेदारी अदनान खान ने सम्हाली और वे इसमें कामयाब भी रहे। धर्मांधता में डूबी बहन रौशन आरा से वार्तालाप से लेकर बूढ़े पिता को ढांढस बंधाते और दुश्मन हुए दोस्त और भाई से मुठभेड़ से लेकर अपनी शरीक ए हयात से विछोह तक के दृश्यों को साकार करने में अदनान ने ईमानदारी निभाई। लेखक मोहम्मद हसन की परिकल्पना को जमीनी रूप देने में संगीतकार सुरेंद्र वानखेड़े ने भी महती भूमिका निभाई।
दर्जनों कलाकारों ने निभाई जिम्मेदारी
रंग मोहल्ला सोसायटी द्वारा प्रस्तुत इस नाटक में करीब दो दर्जन कलाकार मंच पर थे तो इतने ही लोगों का परदे के पीछे से सहयोग था। इनमें उदय निवालकर, मनाली मैना, सुनिता अहिरे, अदनान खान, रुपेश तिवारी, रमेश अहिरे, सोना ठाकुर, पुनीत सूर्यवंशी, आर्यन रघुवंशी, संजय सिंह कुशवाह, सौरभ राजपूत, अभिषेक केवट, रविंद्र चौधरी, विवेक त्रिपाठी, जूली प्रिया, रोशनी द्विवेदी, श्वेता, फोजिया, प्रियंका, फैजल उददीन. सौरभ राजपूत आदि विभिन्न किरदार निभाते नजर आए।
ये है दारा का व्यक्तित्व
दारा शिकोह को बेहद उदार और गैर-रूढ़िवादी मुसलमान माना जाता है। दारा की इस्लाम के साथ ही विशेष तौर पर हिंदू धर्म में गहरी रुचि थी। दारा न केवल इस्लाम बल्कि हिंदू, बौद्ध, जैन आदि धर्मों का भी सम्मान करते थे। वह सभी धर्मों को समानता की नजर से देखते थे। ऐसा कहा जाता है कि कई हिंदू मंदिरों के लिए दारा ने दान भी किया था।
दारा ने हिंदू और इस्लाम धर्म में समानताएं खोजने का प्रयास किया। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने 52 उपनिषदों और महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक किताबों का संस्कृत से फारसी में अनुवाद कराया था। ताकि हिंदुओं के उपनिषदों को मुस्लिम विद्वान भी पढ़ सकें। साथ ही उन्होंने हिंदू उपनिषदों के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार में भी मदद की थी।
दरअसल, दारा शिकोह द्वारा उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराने का फायदा ये हुआ कि ये यूरोप तक पहुंचा और वहां से उनका लैटिन भाषा में भी अनुवाद हुआ, इससे उपनिषदों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध होने में मदद मिली।
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