दुनिया के आमाल तय करेंगे आखिरत के मामले : मौलाना सआद साहब


  • दुआ ए खास के साथ कल होगा चार दिन के आलमी तबलीगी इज्तिमा का समापन
  • दो हजार जमातों में निकलेंगे हजारों जमाती

✍️ खान अशु

भोपाल। दुनिया में जो आया है, उसे लौटकर अल्लाह के पास जाना है। आसमान पर एक दुनिया है, जिसकी जिंदगी का कोई अंत नहीं है। उस जिंदगी के लिए होने वाले फैसले हमारे दुनिया में किए गए आमाल से ही तय होने वाले हैं। इसलिए हर इंसान को अपनी जिंदगी में हर पल कुछ बेहतरी का साथ रखना चाहिए ताकि आखिरत की जिंदगी संवर सके।

आलमी तबलीगी इज्तिमा के तीसरे दिन रविवार को बड़े मजमे को संबोधित करते हुए दिल्ली मरकज से आए मौलाना सआद साहब ने ये बात कही। रविवार की छुट्टी और सोमवार को होने वाली दुआ ए खास में शामिल होने के लिए इज्तिमागाह पर अब तक करीब 7 लाख से ज्यादा लोग पहुंच चुके हैं। जबकि दुआ के वक्त ये तादाद करीब 12 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है।


औरत घर की जीनत ही नहीं, जन्नत का दरवाजा भी 

इतवार को सुबह फजिर की नमाज के बाद बयान करते हुए मौलवी फारुख साहब ने कहा कि इस्लाम में महिलाओं को खास एहतराम, हुकूक और उसके लिए खास दर्जे रखे गए हैं। ओरत मां, बहन, बीवी और बेटी के रूप में कई तरह से लोगों की जिंदगी को संवारती है। इसी तरह दोपहर में जौहर की नमाज के बाद हुए बयान में मौलाना शमीम साहब ने एक अल्लाह पर यकीन और इसी से कामयाबी की बात कही। उन्होंने कहा कि अल्लाह पर यकीन पक्का होगा तो दुनिया में हर चीज का खोफ मन से जाता रहेगा। जो कुछ करता है, अल्लाह ही करता है, इस बात पर यकीन पक्का कर लें। शाम को असीर की नमाज के बाद अपने मुख्तसिर बयान में मौलाना यूसुफ साहब ने कहा कि जमातों में निकलना और लोगों को अच्छी बात सिखाना अल्लाह की रजा का रास्ता है। 

कल दुआ के साथ समापन

चार दिन के इज्तिमा का समापन सोमवार सुबह दुआ ए खास के साथ होगा। सुबह फजिर की नमाज के बाद मौलाना सआद साहब का खास बयान होगा। इस दौरान वे जमातों में निकलने वाले लोगों को इस सफर में अपनाए जाने वाले अखलाक, रखे जाने वाले ख्याल और किए जाने वाले काम समझाएंगे। इसके बाद सुबह करीब 11 बजे दुआ होगी। जिसके बाद लोग इज्तिमागाह से रुखसत होना शुरू हो जाएंगे। इज्तिमा प्रबंधन के आरिफ गौहर ने बताया कि दुआ के बाद इज्तिमा से करीब 2 हजार जमाते देशभर के लिए निकलेंगी।। 


विदेशी जमातें, निकाह की कमी

इज्तिमा आयोजन के 73 बरस में पहली बार विदेशी जमातों की शिरकत नहीं हो पाई, जिन्हें लोगों ने याद किया। इसी तरह इज्तिमा के दौरान होने वाले सामूहिक निकाह को भी लोग याद करते रहे। लाखों लोगों की दुआओं के साथ होने वाले निकाह का ये मौका अब लोगों को सालभर बाद ही मिल पाएगा।

जमाती का इंतकाल

आलमी तबलीगी इज्तिमा में अमरावती से शिरकत करने आए 72 साल के शेख इस्माइल का हार्ट अटैक आने से इंतकाल हो गया। इस्माइल यहां फूड जोन में खाने वाले स्टॉल पर खिदमत देने के लिए आए थे। इनके शव को एंबुलेंस के जरिए उनके घर रवाना कर दिया गया है।

ट्रैफिक मैनेजमेंट : शहर में व्यवस्था संभालने के लिए हो सकता है इसका उपयोग 

ट्रैफिक मैनेजमेंट का यहां एक बेहतर उदाहरण देखने को मिला है। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन से लेकर ईटखेड़ी घासीपुरा तक वाहनों को सुचारू रखने पांच हजार लोगों ने इंतजाम संभाल रखे हैं। वाहनों को एक लेन और लगातार चलते रहने की कोशिश रहती है। दो साल बाद हुए तब्लीगी इज्तिमा में इस बार ट्रैफिक का इंतजाम बदला गया है। यह बदलाव मुख्य रास्ता परिवर्तित होने के कारण किया गया है। निशातपुरा ब्रिज बंद होने से छोला से ट्रैफिक डायवर्ट हैं। ट्रैफिक पुलिस के साथ वालेन्टियर्स की तैनाती होती है। पूरे रास्ते पर अलग-अलग टुकड़ों में करीब पांच हजार लोग इसे देख रहे हैं। इनकी ड्यूटी बदलती रहती है। ट्रांसपोर्ट कारोबारी निजाम कुरैशी ने कई साल से इंतजाम कर रहे हैं। ट्रैफिक जाम की मुख्य वजह वाहनों के पहिए थमना होता है। कोशिश रहती है कोई रूक न पाए ईदगाह निवासी आफाक अहमद सोशल ग्रुप से जुड़े हैं। इज्तिमा में लगातार सेवादार के रूप में काम करते हैं। ये बताते हैं एक वाहन के रुकने या ठहरने से पूरा ट्रैफिक अटकता है। पूरे रास्ते में हमारी कोशिश पहियों को रुकने न देने की होती है। बीच में किसी को दिक्कत आती है तो तुरंत सड़क किनारे कर मदद की जाती है। 

तीन मुख्य चौराहे, एक ब्रिज, तीन क्रॉसिंग 

इज्तिमा के रास्ते में तीन मुख्य चौराहे हैं। पहला चौराहा भोपाल का है। यहां से आगे जाने पर डीआईजी बंगला और करोद चौराहा है। इन जगहों पर ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए सबसे ज्यादा जोर दिया है। करीब १५ साल से इज्तिमा की ट्रैफिक व्यवस्था से जुड़े सईद खान बताते हैं। उनके पास रेलवे स्टेशन के पास का हिस्सा है। पहले करोद में तैनाती रहती थी। लोगों को 

श्रेणी बद्ध पार्किंग  

इज्तिमा स्थल के आसपास 45 पार्किंग हैं। यह भी ट्रैफिक मैनेजमेंट में अहम भूमिका निभाती है। इज्तिमा स्थल से करीब दो किमी पहले से इन्हें बनाने की शुरुआत होती है। एक के बाद एक भरने के बाद ही दूसरी पार्किंग खोली जाती है।

शतक पार कर चुके इज्तिमा आयोजन ने भोपाल में पूरे किए 75 बरस


दीन की बातें सीखने और सिखाने के मकसद से एक जगह इकट्ठा होना और सामूहिक रूप से इबादत करने का नाम ही इज्तिमा है। वैसे भारत में इसकी शुरुआत करीब 100 पहले हुई, लेकिन यह सिलसिला बाबा आदम के जमाने से प्रचलन में है। इस्लाम के आखिरी पैगंबर मोहम्मद सअ ने भी अपने दौर में इज्तिमा किया है। दुनिया के तीन बड़े धार्मिक समागम में एक माना जाने वाला भोपाल का आलमी तबलीगी इज्तिमा 1947 में शुरू हुआ था। गत दो साल कोविड हालात के चलते ये आयोजन नहीं हो पाया था, जिसके चलते इस बार के आयोजन को 73वा वर्ष करार दिया जा रहा है।

करीब 100 साल पहले भारत में इज्तिमा का वर्तमान रूप एक घटना के बाद सामने आया। जब नवंबर 1922 में तुर्की में मुस्तफ़ा कमालपाशा ने सुल्तान ख़लीफ़ा महमद षष्ठ को हटा कर अब्दुल मजीद आफ़ंदी को खलीफा बनाया, उसके सारे राजनीतिक अधिकार हड़प लिए, तब जिन्ना और गाँधीजी की ख़िलाफ़त कमेटी ने 1924 में विरोध प्रदर्शन के लिए एक प्रतिनिधिमंडल तुर्की भेजा।

राष्ट्रवादी मुस्तफ़ा कमाल ने उसकी सर्वथा उपेक्षा की और जलन और द्वेष में आकर 3 मार्च 1924 को उन्होंने ख़लीफ़ा का पद ख़त्म कर ख़िलाफ़त का हमेशा-हमेशा के लिए अंत कर दिया। 1924 में ख़िलाफ़त हमेशा-हमेशा के लिए मिट गई। मुसलमानों का संगठन बिखर गया। दूरदराज के गांव और देहात में रहने वाले कम पढ़े-लिखे मुसलमानों को अपने धर्म में बनाए रखने और उन्हें धार्मिक तौर पर शिक्षित करने के लिए इस आन्दोलन की शुरुआत की गई, जिसे आजकल लोग तब्लीगी जमात कहते हैं। इस आंदोलन का असर हुआ। मुसलमानों ने हिंदुस्तान में जगह -जगह इकठ्ठा होकर इज्तिमा किया। नमाज के साथ दुआ और दीन की बातें सिखाई। धीरे-धीरे लोगों को इस्लामिक जानकारी मिलने लगी। अनपढ़ मुसलमानों ने अल्लाह को पहचाना। इसका फायदा ये हुआ कि मुसलमानों ने अपने धर्म को नही छोड़ा।

कहां - कहां होता है इज्तिमा

इज्तिमा आयोजन के 25 साल बाद वर्ष 1947 में देश का बंटवारा हो गया। हिंदुस्तान के तीन टुकड़े हो गए। पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश जैसे नए देश बन गए। इसलिए दुनिया के सबसे बड़े 3 इज्तिमे इन 3 मुल्कों में होते हैं। अब ये आयोजन दुनियाभर के 213 देशों तक फैल चुका है। हिंदुस्तान के भोपाल शहर के अलावा ये उत्तरप्रदेश के बुलन्दशहर में भी आयोजित होता है। जहां लोग इकट्ठा होकर नमाज पढ़ते है, दीन की बातें करते हैं फिर दुआ करते हैं। 

भोपाल में 1947 से

मप्र की राजधानी भोपाल में सन 1947 में मस्जिद शकूर खां में आयोजित किया गया। महज 13 लोगों की मौजूदगी वाले इस आयोजन को अगले साल ही नया ठिकाना मिल गया, जब ताजुल मसजिद बनकर तैयार हो गई। 1948 से शुरू हुआ ये सिलसिला वर्ष 2003 तक निरंतर जारी रहा। इस दौरान यहां आने वाले जमातियों की तादाद साल दर साल बढ़ती गई और शहर के बीच होने वाला ये आयोजन शहर की यातायात व्यवस्था को प्रभावित करने लगा। जिसके बाद इज्तिमा का आयोजन ईंटखेड़ी शिफ्ट कर दिया गया। सैकड़ों एकड़ की एहतियात वाली जगह और शहर के विभिन्न दिशाओं से आने वाली जमातों की आसानी के चलते ये जगह अब लोगों को रास आ गई है। करीब 20 का सफर पूरा कर रहे इज्तिमा में शामिल होने वालों की संख्या अब 10 लाख से ज़्यादा हो चुकी है।

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