"इंसान अपने दुनिया में आने के मकसद को समझे, कामयाब हो जाएगा..."


  • 73 वें आलमी तब्लीगी इज्तिमा का आगाज 
  • पहले दिन चला तकरीरों का सिलसिला, नमाज ए जुमा भी हुई
  • आलमी तबलीगी इज्तिमा में किसी ने खर्च कर दी जिंदगी, कोई पहुंचा पहली बार

भोपाल। 73वें आलमी तब्लीगी इज्तिमा का आगाज शुक्रवार को सुबह फजिर की नमाज के बाद राजस्थान से आए मौलाना चिराग उद्दीन साहब के बयान के साथ हुआ। ईंटखेड़ी-घासीपुरा में लाखों जमातियों के मजमे को खिताब करते हुए मौलाना ने फरमाया कि अल्लाह ने हमें किसी न किसी काम के लिए पहुंचाया है। उस काम से हम भटक गए हैं। उन्होंने हदीस और कुरआन की रोशनी में नसीहत की कि अल्लाह के हुक्म और पैगम्बर साहब के बताए रास्ते पर चलें। 

मौलाना ने कहा कि दुनिया में हर चीज का मकसद है। अल्लाह ने जो आसमान बनाया उसका मकसद है, अल्लाह ने जो पहाड़ों को बनाया उसका भी अपना मकसद, समुंदर, नदियां और पानी को बनाने का भी मकसद है। मखलूक को पैदा किया उसका भी मकसद है, लेकिन सब तो अपने काम में लगे हुए हैं, सिर्फ मुसलमान अपना मकसद भूल गए हैं। उन्होंने इस दौरान पैगम्बर हजरत नूह अलैहिस्सलाम से लेकर हजरत यूसुफ अलैहिस्सलाम तक का किस्सा अपने बयान में सुनाया। 

हजरत ने किया मगरिब के बाद बयान

दिल्ली मरकज से आए मौलवी शाआद साहब कांधलवी ने शुक्रवार को मगरिब की नमाज के बाद बयान किया। बड़ी तादाद में मौजूद जमातों के बीच स्थानीय लोगों का भी बड़ा जमावड़ा इस दौरान लगा था। हजरत ने कहा कि पड़ोसी से अच्छे ताल्लुक, सबके लिए मन में अच्छे ख्यालात और दुनिया के हर इंसान के लिए भलाई की नीयत रखना ही सही ईमान है। इंसान नमाज ओ इबादत के साथ समाज में बेहतर तस्वीर पेश कर खुद के लिए भी और अपने मजहब के लिए भी अच्छे संदेश दे सकता है। इज्तिमा के पहले दिन जुमा की नमाज के बाद मेहमूद साहब की तकरीर हुई। जबकि असीर की नमाज के बाद मौलवी यूसुफ साहब ने मुख्तसिर बात की।

नमाज ए जुमा में टूटा हुजूम

इज्तिमा के पहले दिन शुक्रवार को इज्तिमागाह पर जुमा की नमाज अदा की गई। देशभर से आईं सैकड़ों जमातों में शामिल लाखों लोगों ने इसमें शिरकत की।

साथ ही बड़ी तादाद में स्थानीय लोगों ने भी इस खास मौके को भुनाते हुए इस बड़े मजमे की नमाज में शिरकत की। जिसके चलते आमतौर पर शहर की मस्जिदों में जुमा की नमाज में होने वाली भीड़ कम दिखाई दी।

किसी ने खर्च कर दी जिंदगी, कोई पहुंचा पहली बार

तबलीग से सिखाई जाने वाली भलाई की बातें और खुद की जिंदगी में एक बेहतर अनुशासन कायम रखने की नीयत से लोगों का जमातों में निकलने का सिलसिला करीब सौ बरस पुराना हो चुका है। भोपाल इज्तिमा में पहुंचे लोगों में कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा जमातों में गुजार दिया है। साथ ही कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने दीन की इस महफिल को पहली बार अनुभव किया है।

मूलतः मथुरा के रहने वाले शमसुद्दीन कारोबारी सिलसिले को पार करते हुए ग्वालियर होते हुए भोपाल पहुंच गए हैं। पुराने शहर के बाशिंदे शमसुद्दीन बताते हैं दुनिया में सब कुछ जरूरी है, लेकिन उससे बड़ा काम दीन की खिदमत है। वे बताते हैं कि करीब 55 बरस से वे लगातार जमातों और इज्तिमा का हिस्सा बन रहे हैं। घर के सुकून से ज्यादा जमातों में रहने वाले 90 वर्षीय शमसुद्दीन महीने में तीन दिन, साल में चालीस दिन जमात में आवश्यक रूप से जाते हैं। इसके अलावा वे कई बार चार महीने के चिल्ले पर भी कई बार जा चुके हैं। 

मेडिकल डिपार्टमेंट में अकाउंटेंट रहे हाजी अनवर उल्लाह खान भी अपने रिटायरमेंट के बाद ज्यादा वक्त जमातों और तबलीगी काम में गुजारते हैं। करीब 30 वर्षों से लगातार आलमी तबलीगी इज्तिमा में शिरकत कर रहे 82 वर्षीय अनवर उल्लाह बताते हैं कि असल सुकून दीन की बात में है और कामयाबी का रास्ता भी इसी से होकर गुजरता है।

उम्र 45 के पार ही पहुंची है, लेकिन अफजल शेख ने जमातों का रास्ता छोटी उम्र से ही इख्तियार कर लिया था। चार महीने, चालीस दिन और तीन दिन की इज्तिमा हाजिरी उनकी अल्पायु से ही शुरू हो गई थी। पेशे से एयर कंडीशनर इंजीनियर अफजल बताते हैं कि इंसान के दुनिया में आने का असल मकसद मौत के बाद की जिंदगी को संवारना है। जमातों के रास्ते इसी के लिए मेहनत की जा रही है।


12 वर्षीय आसिम अहमद पहली बार इज्तिमा में शामिल होने पहुंचे हैं। कुरआन की तालीम से फारिग होने के बाद वे नमाजों की पाबंदी करते रहे हैं। तफरीह के बतौर कई बार अपने वालिद बशीर अहमद के साथ इज्तिमागाह भी पहुंचे। लेकिन ये पहला मौका है, जब वे पूरे तीन दिन की जमात के साथ इज्तिमा में पहुंचे हैं। स्कूल से छुट्टी और अपनी दैनिक दिनचर्या को नजरंदाज कर आसिम ने जमात में शरीक होने का मकसद बेहतर तरबियत और कुछ अच्छे सबक सीखना बताया।

जमातों का आना जारी

आलमी तब्लीगी इज्तिमा के पहले दिन ही लाखों की तादाद में लोग पहुंच गए हैं। जबकि अभी लोगों के पहुंचने का सिलसिला जारी है। शनिवार और रविवार की छुट्टी के चलते ये मजमा अगले दो दिन और बढ़ने की उम्मीद है। सोमवार को होने वाली दुआ के दिन तक इज्तिमा पहुंचने का सिलसिला जारी रहेगा। 


खिदमत के लिए लगे कैम्प 

राजधानी में खिदमत के लिए जगह-जगह कैम्प लगाए गए हैं। भोपाल रेलवे स्टेशन, हबीबगंज रेलवे स्टेशन, नादरा बस स्टेंड, भोपाल टाकीज, प्रभात चौराहा से इज्तिमागाह पर जाने वालों के लिए खिदमती कैम्प लगाए गए हैं। स्टेशन पर उतरते ही पहले इज्तिमा यात्रियों का इस्तकबाल किया जाता है। इसके बाद उन्हें कैम्प में लाकर चाय पिलाई जाती है, फिर मुफ्त में ट्रकों, बसों, जीपों और अन्य साधनों से उन्हें इज्तिमा स्थल तक पहुंचाया जाता है। इस मार्ग पर चलने वाले कई ऑटो, आपे और इलेक्ट्रिक ऑटो ने भी जमातों के लिए किराया फ्री कर दिया है।

यातायात पुलिस के साथ वॉलिटियर भी जुटे 

प्रशासन के हजारों लोग तो खिदमत में लगे हुए हैं ही, यातायात पुलिस के भी तकरीबन ढ़ाई हजार जवान और तब्लीगी जमाअत के तकरीबन इतनी ही तादाद में बॉलिटियर यातायात व्यवस्था को बनाने में दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। यातायात व्यवस्था का आलम यह है कि लाखों लोगों के इज्तिमा पहुंचने के बाद भी जरा सा भी कहीं न तो ट्राफिक जाम हो रहा है और न ही किसी सड़क किनारे रहने वालों को किसी प्रकार की कोई परेशानी का सामना करना पड़ रहा। वॉलिटियर्स का यह जज़्बा देख पुलिस भी उनसे सबक ले रही है। लाखों लोगों के बाद भी किसी तरह की कोई अव्यवस्था नजर नहीं आ रही। 

इधर सजने लगा बाजार

ताजुल मसजिद परिसर में इज्तिमा आयोजन के दौर से जारी व्यापारिक मेले की परंपरा अब भी जारी है। गरीब नवाज मार्केट के नाम से मशहूर ये बाजार गर्म कपड़ों, मुरादाबादी बर्तन, हैंडलूम आइटम्स और खानपान के लिए जाना जाता है। ये बाजार इज्तिमा दुआ के बाद 22 नवम्बर से शुरू होगा। जो करीब दो माह तक चलेगा।


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