"जहां पर राम रखते हैं, वहीं रहमान रखते हैं"
- गोरखपुर में जमकर बही काव्य की रसधारा, महोत्सव का गरिमामय समापन
- स्थानीय कवियों ने दिल से लुटाया काव्य रंग, श्रोताओं ने किया काव्य धारा का रसवादन
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)। गोरखपुर महोत्सव में स्थानीय कवियों ने जमकर अपनी रचनाओं का पाठ किया। युवा कवियों ने जहां काव्य की रसधारा बहाई तो श्रोताओं ने भी इसमें खूब डुबकियाँ लगा कर काव्य धारा का रसवादन किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए के वरिष्ठ कवि डॉ. मनोज कुमार गौतम मनु ने कहा कि महोत्सव युवाओं को अवसर और सशक्त मंच देने का एक सार्थक मंच है और एक बेहतरीन प्रयास जिसकी सराहना की जानी चाहिए। महोत्सव के शुभारंभ में सरस्वती वंदना आसिया सिद्दीकी ने किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मिन्नत गोरखपुरी ने पढ़ा-
सजा के अपने घर में गीता
और कुरान रखते हैं।
जहां पर राम रखते हैं वहीं रहमान रखते हैं।।
सुभाष यादव ने पढ़ा-
नया साल आइल नया साल आइल।
पुरनकी रजाई में पेवना सटाइल।।
प्रमोद चोखानी ने पढ़ा-
बच्चों को अपाहिज़ करने वाले खिलौने।
अब सरेआम बिकने लगे हैं दुकानों में।।
शाहीन शेख ने पढ़ा-
तुम्हे खबर नही शाहीन क्या है तुम्हारे लिए।
ये इश्क, रोग नहीं दवा है तुम्हारे लिए।।
उत्कर्ष शुक्ला ने पढ़ा-
दीवारें हैं खड़ी कबसे ये बातें याद हो न हो।
ज़रूरी है मुकम्मल छत का अपने साथ रहना है।।
स्मिता श्रीवास्तव ने पढ़ा-
तनहा तनहा चांद फलक पर तनहा तनहा तारे हैं।
महफ़िल में भी हमने देखा तनहा तनहा सारे हैं।।
डॉक्टर चेतना पांडेय ने पढ़ा-
झुग्गियों-मुफ़लिसों की बस्ती तक।
साल बदला तो हाल भी बदले।।
निर्भय निनाद ने पढ़ा-
मुहब्बत को करो स्वीकार तुम सब ए शहर वालों।
गमों में मुस्कुराता मैं तो लड़का गाँव वाला हूँ।।
साथ ही साथ आकृति अर्पण, प्रेम नाथ मिश्र आदि ने काव्य पाठ किया। अंत में संगीत नाटक एकेडमी के सदस्य डॉक्टर राकेश श्रीवास्तव सभी के प्रति गोरखपुर महोत्सव की तरफ से धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी साहित्य प्रेमी हरिप्रसाद सिंह, वरिष्ठ पत्रकार मुमताज खान, शिवेंद्र सिंह, वरिष्ठ समाजसेवी आदिल अमीन, सैयद इरशाद अहमद, इंतखाब अख्तर, फहीम अहमद, नीरज सिंह आदि मौजूद रहे।
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