'मामा' का प्यार... महंगाई की मार... वोटर का वार... क्या गुल खिलाएगा..?


मध्य
प्रदेश में विधानसभा चुनाव- 2023 के लिए 17 नवंबर शुक्रवार को दलीय और गैर दलीय उम्मीदवारों के राजनीतिक भाग्य ईवीएम में 3 दिसंबर तक के लिए लॉक किए जा चुके हैं। 13 दिन बाद जब वोटिंग मशीन नतीजे उगलेगी तब पता चलेगा कि कौन जीता और कौन हारा? फिलहाल तो कयासों का दौर जारी है। माना जा रहा है कि लाडली बहनों के प्रति 'मामा' का प्यार चुनावी चमत्कार दिखा सकता है। जबकि यह भी कहा जा रहा है कि महंगाई की मार झेल रहे लोग चुनावी चक्रव्यूह में नहीं फंसे और बगैर किसी लोभ-लालच के ऐसा बटन दबाया कि लोकतंत्र को मजबूत होने से कोई नहीं रोक सकता। अब राजनीतिक पंडित भी यह सोचने पर विवश हैं कि आख़िर वोटर का वार क्या गुल खिलाएगा? 

आख़िर किसकी बनेगी सरकार

जाहिर सी बात है कि मध्य प्रदेश में मुख्य रूप से मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है इसलिए सत्ता प्राप्ति भी इन दोनों प्रमुख दलों में से ही किसी एक को होगी। हालांकि हरल्लों की भूमिका को भी नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता। इनकी तादाद भी दोनों ही दलों में लगभग बराबर ही है। 


कमलनाथ की ताजपोशी तय 

वोटिंग के बाद से जो चर्चाएं चल रही हैं उसमें कांग्रेस की सरकार बनने पर जोर दिया जा रहा है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ की ताजपोशी हो सकती है। 

भाजपा में कौन बनेगा सीएम 

अब सवाल यह है कि अगर भाजपा को जीत का जादुई आंकड़ा मिलता है तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा? क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को तो एंटीइन्कंबेंसी के चलते चुनावी पोस्टरों से गायब कर पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया है। भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के अघोषित दावेदारों की फौज इस चुनाव में उतारकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। पार्टी हाईकमान ने जनता को यह भरोसा दिलाना चाहा कि उसके पास कई नेता हैं जो प्रदेश की सेवा करने के योग्य हैं। 


जीते तो मोदी- हारे तो मामा 

दूसरी तरफ शिवराज मामा को भी संकेत दे दिए गए कि यह चुनाव उनके दम पर नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में लड़ा गया है।लिहाजा, जीत का श्रेय भी प्रधानमंत्री मोदी को ही दिया जाएगा और हार गए तो ठीकरा शिवराज मामा के सिर फोड़ दिया जाएगा।इसके उदाहरण हालिया चुनाव हैं जहां भाजपा को हार मिली है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि चुनाव पूर्व और चुनाव बाद जो रूझान सामने आ रहे हैं नतीजे भी इसी के अनुरूप आते हैं तो क्या इसका प्रभाव प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रिय छवि पर नहीं पड़ेगा? इसका राजनीतिक खामियाजा उन्हें आगामी लोकसभा चुनावों में नहीं उठाना पड़ेगा? एक सवाल और क्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से प्रदेश की जनता वाकई इतनी नाराज़ है कि पार्टी को उनको चुनावी पोस्टरों से बाहर करना पड़ा? शायद नहीं।

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