घर-घर हुई देवउठनी एकादशी की पूजा, बड़े उत्साह के साथ मनाया गया पर्व


  • वरिष्ठ समाज सेवी जितेंद्र कानूनगो ने बताया देवउठनी एकादशी का महत्व 

✍️ बाकानेर सैयदरिजवान अली।देवउठनी एकादशी का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। रात्रि में घर- घर मे गन्ने के मंडप के नीचे भगवान श्रीहरि- तुलसी जी का विवाह हुआ। एकादशी पूजन के लिए गन्ना, बेर, सिंघाड़ा, मूली, चने की भाजी, मकोरा, सीताफल आदि लेने के लिए बाज़ारो में भारी भीड़ देखी गई। बेर, भाजी, आंवले, उठो देव सांवरे के गीत गाकर भगवान को जगाया। देवउठनी एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर लोगों ने स्नान कर घर के दरवाज़े को पानी से स्वच्छ किया। उसके ऊपर गन्ने का मंडप सजाने के बाद उसमें भगवान श्रीहरि विष्णु को स्थापना की गई। भगवान को गुड़, रुई, रोली, अक्षत, पुष्प, इत्र आदि से पूजन किया। पूजन में दीप जलाकर देव उठने का महत्व मानते हुए उठो देव, बैठो देव  का भजन गया गया।

नगर के सभी मंदिरों में भी एकादशी की पूजा बड़े ही उत्साह के साथ हुई सभी मंदिरों में विशेष साज सज्जा और प्रकाश से जगमगा रहे थे।

जो श्रद्धालु महिलाएं कार्तिक मास के व्रत रखती है। एकादशी के दिन सभी महिलाएं मान्यता अनुसार सिरपर कलश रखकर नगर परिक्रमा करने की परंपरा को नियमानुसार सभी कार्तिक मास के गीत गाते हुए नगर परिक्रमा करती जा रही थी। इस दिन ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं ने भी सभी देवी मंदिरों के दर्शन एवं पूजन अर्चन किया।

घरों में बनाए गए स्वादिष्ट व्यंजन दीपावली की तरह एकादशी के दिन भी लोग बाजारों से मिठाइयां खरीद कर लाए और कई घरों में मिठाईयां और तरह तरह के व्यंजन बनाएं गए।इस दिन लोगों ने एकादशी का व्रत रखा।


बच्चों और बड़ों ने चलाएं पटाखे 

देव उठानी एकादशी के पूजन के बाद बड़ों एवं बच्चों ने उत्साह पूर्वक पटाखे चलाएं कुछ बच्चों ने फुलझड़ी कुछ ने अनारदाने और चक्रीया चला कर प्रसन्नता व्यक्त की।घर के सामने आकर्षक रंगोली बनाई। इसी प्रकार बड़ों ने भी बच्चों के साथ मिलकर पटाखे फोड़े।

दिन भर रही बाजार में चहल-पहल सुबह से ही बाजार में पूजन सामग्री खरीदने के साथ- साथ गन्ने की दुकानों पर भी खासी भीड़ रही।इस दिन लोगों ने दो पहिया वाहन एवं चार पहिया को भी खरीदा, यह सिलसिला शाम तक चलता रहा।

क्यों मनाते हैं देवउठनी एकादशी

वरिष्ठ समाज सेवी जितेंद्र कानूनगो ने बताया कि भगवान विष्णु व जालंधर के बीच युद्ध हुआ था। जालंधर की पत्नी तुलसी पतिव्रता थी। इस वजह से भगवान विष्णु उसे पराजित नहीं कर पा रहे थे। जालंधर को पराजित करने भगवान माया से जलंधर का रूप धारण कर तुलसी का सतीत्व भंग करने पहुंच जाते हैं। जलंधर का भगवान के द्वारा वध हो जाता है। भगवान विष्णु तुलसी को वरदान देते हैं कि उसके साथ-साथ ही पूजा जाएगी। एक अन्य कथा के अनुसार गंगा राधा को जड़त्व रूप हो जाने वह राधा को गंगा के जल लोप हो जाने का शाप दिया था राधा व गंगा दोनों ने भगवान कृष्ण को पाषाण रूप हो जाने का शाप दे दिया था, इसके कारण ही राधा तुलसी गंगा नदी वह कृष्णा सालिगराम जी का विवाह होता है। प्रबोधनी एकादशी के दिन सालिगराम तुलसी एवं शंकर के पूजन का विशेष महत्व है। इस पूजा से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इन बातों से घर में सुख शांति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

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