किसान के बेटे ने राजा को हराया..!


  • पहली चुनावी हार से कैसे मिला जीत का मंत्र? 
  • कौन हैं खिलचीपुर रियासत के 'माड़साब जी'? 
(खिलचीपुर के भाजपा विधायक हजारीलाल दांगी से नौशाद कुरैशी एवं प्रेम कुशवाहा की विशेष बातचीत) 

भोपाल। राजगढ़ जिले की खिलचीपुर रियासत की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। इसका कारण वहां की ऐतिहासिक महत्व की इमारतों किले वगैरह को माना जाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में इस रियासत की नई पहचान एक किसान के मास्टर (माड़साब जी) बेटे की वजह से भी हो गई है। माड़साब जी खिलचीपुर विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत कर दूसरी बार विधायक निर्वाचित हुए हैं। गांव के एक पुराने घर में रहने वाले इस किसान के बेटे ने खिलचीपुर के राजा की चुनावी किलेबन्दी को ध्वस्त कर पराजित कर दिया है। हम बात कर रहे हैं नवनिर्वाचित विधायक हजारीलाल दांगी की, जिन्हें क्षेत्र के लोग सम्मान से माड़साब जी कहते हैं। 


विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान हमारी मुलाकात उनसे हुई और चल पढ़ा बातचीत का सिलसिला। हमने सवाल दागा- माड़साब जी आप तो राजा के पुराने मित्र हैं फिर इतना राजनीतिक बैर क्यों ? उन्होंने तपाक से कहा- भाई-भतीजावाद, परिवारवाद यही सब तो है कांग्रेस पार्टी में। हमने कहा-यह सब तो भाजपा में भी है, उन्होंने कहा कि नहीं, भाजपा कार्यकर्ता आधारित पार्टी है। यहां कार्यकर्ताओं का यथोचित सम्मान है। अवसर आने पर सामान्य कार्यकर्ता को बड़ी जिम्मेदारी भी दी जाती है। 


खिलचीपुर विधानसभा सीट का सियासी इतिहास हमेशा ही भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबले का रहा है। इस बार भी ऐसा ही देखने को मिला। भाजपा के हजारीलाल दांगी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के पूर्व मंत्री प्रियव्रत सिंह को करीब 14 हजार वोट से हरा दिया। प्रियव्रत सिंह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (दिग्गी राजा) के भतीजे हैं।18 साल मास्टरी करने के बाद नौकरी छोड़कर राजनीति में कूदे हजारीलाल दांगी ने पहला चुनाव निर्दलीय लड़ा और हार का स्वाद भी चख लिया। चुनावी हार से ही जीत का मंत्र मिला और माड़साब जी की सहजता सरलता और मिलनसारिता राजनीति में खूब फलीभूत हुई। विधायक दांगी ने बताया कि जनपद पंचायत और जिला पंचायत के चुनाव जीते तथा 1994 से 1998 तक राजगढ़ जिला पंचायत के निर्विरोध अध्यक्ष रहे। माड़साब जी के अथक परिश्रम एवं लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने 1998 में विधायक का चुनाव लड़ाया और जीते भी।


2003 आते तक खिलचीपुर राजघराने के राजकुमार प्रियव्रत सिंह चुनाव लड़ने के योग्य हो चुके थे। लिहाजा, अपराजित विधायक हजारीलाल दांगी को टिकट नहीं मिला। इसी प्रकार 2008 में भी भाई-भतीजावाद के चलते कांग्रेस पार्टी ने दांगी को टिकट नहीं दिया। इधर माड़साब जी का जनसेवा ज्वार हिलोरे मारने लगा। समाज तथा समर्थक कार्यकर्ताओं में भी पार्टी उपेक्षा के कारण क्रोध बढ़ने लगा। सभी की सहमति से 2008 में बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़ कर दूसरे नंबर पर रहे तथा कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी को धूल चटा दी। उस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई। यह कांग्रेस के लिए बेहद शर्मनाक था, क्योंकि खिलचीपुर को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। यहां से भाजपा को जीत मिली। 35 हजार से अधिक वोट पाने वाले माड़साब जी भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों की नज़र में चढ़ चुके थे। फिर क्या था भाजपा के जौहरियों ने खिलचीपुर रियासत के राजनीतिक खजाने से माड़साब जी रुपी नायाब हीरे को निकाल कर भाजपा के कुंबे में शामिल कर लिया। 2013 में पहली बार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भतीजे कांग्रेस प्रत्याशी प्रियव्रत सिंह के खिलाफ़ चुनाव मैदान में उतारा और विजयश्री का वरण भी किया। 

हालांकि 2018 में दांगी हार गए थे। उन्होंने उस पराजय का हिसाब इस चुनाव- 2023 में विजयी होकर चुकता कर लिया। क्षेत्रीय विकास के मुद्दे पर पूछे गए सवाल के जवाब में विधायक ने कहा कि आप स्वयं खिलचीपुर पधारें एवं विधानसभा क्षेत्र का भ्रमण कर विकास कार्यों की समीक्षा करेंगे तो उत्तम रहेगा। हमने तो जमकर विकास कार्य किए हैं। एक काॅलेज खुलवाना है, तो वह इस बार खुल जाएगा। लाडली बहना योजना के सवाल पर उन्होंने कहा कि बिल्कुल, जीत में लाडली बहनों का बड़ा योगदान रहा है। दल-बदल पर पूछे गए एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि प्रारंभ से ही दोनों दलों के कार्यकर्ताओं से मधुर संबंध रहे हैं। इसलिए सामंजस्य स्थापित करने में कोई समस्या नहीं आई। कार्यकर्ताओं का सम्पूर्ण सहयोग मिला, तभी तो एक किसान का बेटा बाहुबल और धनबल को परास्त करने में सफल रहा। उल्लेखनीय है कि विधायक हजारीलाल दांगी राष्ट्रीय दांगी क्षत्रिय महासंघ, भारत के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। 

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