अलविदा चचा : चौंकाने की आदत पुरानी है आपकी...!


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न दशक से ज्यादा उर्दू सहाफत को वक्फ करने वाले मुशाहिद सईद खान विदा हो गए। दो साल से ज्यादा का बीमारियों का उनका साथ। कमोबेश शहर के सभी अस्पतालों की चौखट चढ़ चुके थे। शहर के छोटे बड़े डॉक्टर हकीमों से भी उनका राब्ता हो चुका था। लेकिन कहने को बीमारी के नाम पर कोई ऐसा बड़ा दाग नहीं था, जो जान से खिलवाड़ कर सके। बीमारी थी दिमाग से जुड़ी हुई, जो सोचने लगे तो बस उसको लेकर सोचता ही रहे। 

काम को लेकर जितना समर्पित और फिक्रमंद थे, उसी ने इस बीमारी से उन्हें जोड़ा था। गलत बर्दाश्त नहीं है, लापरवाहियां और अव्यवस्थाएं चैन नहीं लेने देती हैं। उर्दू सहाफत का साथ था, इसलिए आलिम उलेमा, मदरसे मस्जिद और मुस्लिम ईदारों से जुड़ाव था, आना जाना था। इनको लेकर फिक्र इस हद तक रही कि अखबार से लेकर अपने डीडी कार्यक्रमों तक में शामिल रखते। मौका मिलता तो सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर अपनी भड़ास निकालने से नहीं चूकते। कई बार उनके बढ़ते टेंशन को देखते हुए कई व्हाट्स एप ग्रुप से उनको अलग कर देने के नुस्खे भी हम अपना लिए करते। देर रात तक नींद नहीं आती है, की शिकायत और बहने के साथ वे फिर जुड़ जाया करते थे इन ग्रुप गुत्थम गुत्था से।

रिश्तों की निभाई, इसकी मिठास और इस प्यारे जायके को इनके पास महसूस करना लाजवाब होता। मुंह पर तल्खी लेकिन दिल में नरमी और अपनापन रखने के माहिर चचा मुशाहिद सईद खान अपने पीछे एक ऐसी खला छोड़ कर गए, जिसकी भरपाई किसी के बूते का नजर नहीं आता। 

खबरों के पीछे की लपक, खुशियों के मौकों, गमगीन माहौल से लेकर फुरसत के लम्हे भी उनके साथ गुजारे जाते रहे। बीमारी के दौर में घर के बिस्तर और अस्पताल की चारपाई भी उनसे मुलाकातों से खाली नहीं रही। अब अचानक इस तरह से उनका सबसे दामन छुड़ा कर चल देना, उनकी इसी अदा के हिस्से में शामिल मानी जाएगी, चचा जो करते हैं, कमाल ही करते हैं। अपने काम, व्यवहार और हर अदा से चौंका देना उनके मिजाज में शामिल था, इसी अंदाज को वह आखिरी बार भी दोहराने से बाज नहीं आए।

शहर कह रहा है कि चचा बहुत याद आओगे, बार बार याद आओगे, हर बात हर मौके पर याद आओगे.... जहां भी रहो, अपनी रौनक बिखेरे रखना, अलविदा... खिराज ए अकीदत।

                                                      ✍️ खान अशु


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