पूर्व सीएम कमलनाथ : अटकलों पर विराम, अंदरखाने सियासी संग्राम !


  • आखिर क्यों लगा कमलनाथ की भाजपा में एंट्री पर ब्रेक? 

✍️ नौशाद कुरैशी 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि वह अपने दीर्घकालिक राजनीतिक जीवन में ऐसे मोड़ पर आ कर खड़े हो जाएंगे, जहां से दो कदम आगे भविष्य का कुआं और चार कदम पीछे अविश्वास की खाई है। कमलनाथ जैसे वरिष्ठ नेता को कांग्रेस से दूर और भाजपा के करीब जाने की विवशता आखिर क्या थी? इस सवाल का जवाब तो यही हो सकता है कि "कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी, यूं तो कोई बेवफा नहीं होता।" 


सियासत के रंग 

गौरतलब है कि कमलनाथ ने शनिवार से सोमवार के बीच मीडिया की सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी हैं। फिलवक्त उनकी यही सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि मानी जा रही है। बाकी एपिसोड में तो कमलनाथ राजनीति के वर्तमान पथ पर 'दो कदम आगे - चार कदम पीछे' ही माने जा रहे हैं। कारण, कमलनाथ के भाजपा में जाने का जितना शोर उनके विरोधी मचा रहे थे, उससे कहीं ज्यादा उनके समर्थकों ने भी सोशल प्लेटफार्म पर हल्ला-गुल्ला मचा रखा था। मीडिया की सुर्खियां बटोरने के बाद कमलनाथ के कदम भले ही अकिंचन कारणों से कांग्रेस पार्टी में ठहर गए हों,परंतु पार्टी के भीतर उपजे उनके प्रति राजनीतिक अविश्वास की भरपाई टीम कमलनाथ कैसे और कब तक करेगी? यह तो वक्त ही बताएगा।

प्रश्न यह है कि स्वर्गीय इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे माने जाने वाले कमलनाथ की कांग्रेसी निष्ठा पर कौन अविश्वास करेगा? कोई नहीं, विश्वास का यह संकट उन्होंने स्वयं सस्पेंस क्रिएट कर पैदा किया है। अन्यथा यात्रा के पहले ही दिन स्वयं खंडन कर देते, तो यह नौबत ही नहीं आती। बहरहाल, अब कमलनाथ के भाजपा में जाने पर ब्रेक लग गया है। अब इसके कारणों की खोजबीन शुरू हो गई है कि आखिर वह कौन सी वजह है जिसने कमलनाथ के बढ़ते काफिले पर ब्रेक लगा दिया है? सत्तारूढ़ भाजपा के शीर्षस्थ सूत्रों के अनुसार कमलनाथ की भाजपा में एंट्री की राह में सबसे बड़ा रोड़ा सिखों द्वारा उनका विरोध है।

इसकी पुष्टि भाजपा के युवा सिख नेता तेजिंदर बग्गा के बयान से भी होती है। बग्गा ने रविवार देर रात ही ट्वीट करके संकेत दिया था कि कमलनाथ को भाजपा में प्रवेश नहीं मिलेगा। बग्गा ने ट्वीट में लिखा था- कमलनाथ के लिए “भाजपा के दरवाजे न तो पहले कभी खुले थे और न ही अब हैं। कई दोस्त कॉल कर रहे हैं और @OfficeOfKNath के बारे में पूछ रहे हैं। मैंने उन्हें फोन पर बता दिया है और यहां भी कह रहा हूं कि भाजपा के दरवाजे कमलनाथ के लिए न पहले खुले थे और न अब हैं। वो सिखों का हत्यारा है और जिसने गुरु तेग बहादुर जी के गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब को जला दिया था। मैं आप सभी को आश्वस्त करता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के रहते यह कभी संभव नहीं होगा।''

यही नहीं,कमलनाथ के ठिठकने का एक अन्य कारण सिंधिया फेक्टर को भी माना जा रहा है। जाहिर है कि कमलनाथ के मुख्यमंत्रित्व काल में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा का दामन थामा था और मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार धड़ाम हो गई थी।सूत्रों की मानें तो उक्त दो प्रमुख कारणों ने भाजपा हाईकमान को भी विचारने पर विवश कर दिया है। अंततोगत्वा कमलनाथ के भरोसेमंद सहयोगी पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने सियासी पारा चढ़ने और साहब की एंट्री पर ब्रेक के संकेत के बाद खंडन कर ही दिया कि कमलनाथ कहीं नहीं जा रहे हैं। 

दिलचस्प बात यह है कि इस पूरे एपिसोड में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को राजनीतिक अग्नि परीक्षा से दोबारा गुजरना पड़ा है। दोबारा इसलिए कि पहली बार कमलनाथ सरकार को बचाने विधायकों की बाड़ा बंदी में अहम भूमिका अदा की। अब स्वयं कमलनाथ के एपिसोड के चलते पार्टी, संगठन और विधायकों को एकजुट रखने की बड़ी जिम्मेदारी भी पटवारी को ही निभानी पड़ी। 


बकौल जीतू पटवारी -
"अभी मेरी कमलनाथ जी से बात हुई है, उन्होंने कहा कि जीतू मीडिया में जो ये बातें आ रही हैं ये भ्रम है। मैं कांग्रेसी था, हूं और रहूंगा...लोकतंत्र में हार जीत होती रहती है। हर परिस्थिति में उन्होंने दृढ़ता से कांग्रेस के विचार के साथ अपना जीवन जीया है और आगे भी कांग्रेस के विचार के साथ अंतिम सांस तक जीवन जीएंगे। ये उनकी खुद की भावना है जो उन्होंने मुझसे कहा है...।"


बकौल सज्जन सिंह वर्मा-"
कमलनाथ ने सवाल किया है कि उन्होंने किससे भाजपा में जाने की बात कही है। मीडिया ने मुद्दा उठाया और वही जवाब दें। सज्जन सिंह वर्मा ने कहा कि जब जिस व्यक्ति के बारे में बात उठे और वो खुद न कहे, कोई कैसे बात मान ले? कमलनाथ ने बताया कि उनका ध्यान 29 लोक सभा सीटों पर है। वे जातीय समीकरण बना रहे हैं। किन लोगों को टिकट देना इस पर ध्यान है। कमलनाथ ने भाजपा में जाने का खंडन किया है।"

पीसीसी चीफ पटवारी और पूर्व मंत्री वर्मा कि माने तो कमलनाथ के भाजपा में जाने की अटकलों पर भले ही विराम लग गया है, लेकिन पार्टी में अंदरखाने सियासी संग्राम जारी रहने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। 

ऐसा माना जा सकता है कि फिलहाल तो कांग्रेस का संकट टल गया है, लेकिन कब तक? यह जानने के लिए कम से कम लोकसभा चुनाव के टिकट बंटवारे तक इंतजार करना होगा।

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