शेर-ए-भोपाल... गरीबों के मसीहा... शोषितों और मज़लूमों की आवाज़... मिलन सार... दिग्गज... दबंग... हवाई चप्पल वाले भाईजान..!

आतिफ को देकर कमान चले गए आरिफ भाईजान 

✍️नौशाद कुरैशी 

यादें शेष : 2003 में आरिफ अक़ील का इंटरव्यू करते हुए नौशाद कुरैशी 

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ग्रेस नेता और 'शेर-ए-भोपाल' कहे जाने वाले पूर्व मंत्री आरिफ अक़ील का 29 जुलाई सोमवार को तड़के निधन हो गया और शाम को सुपुर्द-ए-खाक भी कर दिया। उनके निधन के बाद अब उनकी यादों की चर्चा सियासी गलियारों सहित पूरे भोपाल में गूंज रही है। 2003 में मुझ अकिंचन को भी पहली बार शेर-ए-भोपाल आरिफ अक़ील से इंटरव्यू के बहाने रुबरु होने का मौका मिला। हालांकि यह सिलसिला फिर चलता रहा।आजादी के बाद से कांग्रेस के वरिष्ठ मध्य प्रदेश से मुस्लिम समाज में ऐसे बहुत कम राजनेता हुए हैं, जिन्होंने राजनीति में रिकॉर्ड कायम किया हो। पक्ष हो या विपक्ष, दोनों स्तर पर छवि बेहतर बनाए रखने के लिए आरिफ अकील जाने जाते हैं। 
यादें शेष : विधायक बेटे आतिफ अक़ील के साथ आरिफ अक़ील 

आरिफ अकील का राजनीतिक कैरियर 40 बरस का है, जिसमें उन्होंने कई ऊंचे मुकाम हासिल किए हैं। वह मध्य प्रदेश के इकलौते ऐसे मुस्लिम विधायक थे, जिन्होंने लगातार जीत दर्ज करने का रिकॉर्ड कायम किया है। 

आरिफ अकील हमेशा हवाई चप्पल पहनते थे। एक कार्यक्रम के मंच पर वे जब राहुल गांधी का स्वागत करने जा रहे थे तो राहुल उनकी चप्पलों को देख रहे थे। उस दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में हुआ करते थे।

शेर-ए-भोपाल के नाम से जाने वाले आरिफ अकील ने भोपाल उत्तर से लगभग 40 बरस तक सियासत की। उनका जीवन हमेशा साधारण रहा। उन्हें चमड़े से एलर्जी थी। इसलिए वह हमेशा रबर की दो बद्दी वाली हवाई स्लीपर पहना करते थे। कांग्रेस शासनकाल में दो बार मंत्री भी रहे। उन्होंने अल्पसंख्यक कल्याण, जेल और खाद्य विभाग की जिम्मेदारी संभाली। 


भोपाल शहर में स्थित ‘आरिफ नगर’ आरिफ अक़ील की बेहतरीन उपलब्धियों में से एक है। उन्होंने वो काम किए, जो इंसान और ईश्वर दोनों की निगाह में बेहतर है, जिसका जिक्र आज भी लोगों की जुबान पर रहता है। दरअसल, उन्होंने भोपाल शहर के फुटपाथ, कब्रिस्तान और सड़क पर सोने वाले लोगों को मध्यप्रदेश वक्फ बोर्ड के आधिपत्य की भूमि पर बसाकर आरिफ नगर बसाया था। 

आरिफ अकील की राजनीतिक शुरुआत की बात करें, तो उनकी राजनीति की शुरुआत छात्र जीवन से हुई थी जब वे पहली मर्तबा सैफिया कॉलेज के चेयरमैन बने और लंबे समय तक कॉलेज में उनका दबदबा कायम रहा। उसके बाद उन्होंने विधानसभा में कदम रखा और फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और भोपाल उत्तर की विधानसभा में एकतरफा राज किया, जिसके सियासी पायों को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गोद लेने का असर भी डिगा नहीं पाया। उन्होंने भाजपा के कई दिग्गज नेताओं को राजनीतिक मुकाबलों में शिकस्त दी है। भोपाल उत्तर विधानसभा सीट से वर्ष 1990 में आरिफ अक़ील निर्दलीय विधायक के रूप में चुने गए थे और वर्ष 1998 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और वे वर्ष 2018 तक विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करते रहे। वह 6 बार विधायक और 1996 से 2003 तक कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार और 2018 से 2020 तक कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण, भोपाल गैस राहत और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के कैबिनेट मंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाई।


आरिफ अकील के व्यव्हार को लेकर भोपाल के युवा पत्रकार एवं हाईकोर्ट एडवोकेट डॉ. सैयद अब्दाल हुसैन कहते हैं कि उनका राजनीतिक जीवन काफी सादा और दिलचस्प रहा है। उन्होंने भोपाल की उत्तर विधानसभा पर एकतरफा राज किया है और हिंदू-मुस्लिम एकता की एक बेहतरीन मिसाल रहे। कारोबारी इखतेदार सेठ बीते दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि मुझे आज भी याद है कि जब उन्होंने एक गैर मुस्लिम को अपना रक्तदान करते हुए उसकी जान बचाई थी, जबकि उस समय वे विधायक भी नहीं बने थे, बल्कि सैफिया कॉलेज के प्रेसिडेंट थे। 

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (SDPI) के प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट विदयराज मालवीय कहते हैं कि आरिफ अक़ील शोषितों और मज़लूमों की आवाज़ बुलंद करने वाले, सामाजिक न्याय के लिए हमेशा संघर्षशील रहने वाले, मध्य प्रदेश के दबंग-दिग्गज नेता तथा गरीबों के मसीहा थे। 

लिहाजा, लोगों को फायदा पहुँचाने की लगन और समाजसेवा का जज्बा आरिफ अक़ील के अंदर शुरू से ही रहा। शेर-ए-भोपाल आरिफ अक़ील की लोकप्रियता का अंदाजा उनकी अंतिम यात्रा में जुटी हजारों लोगों की भीड़ से लगाया जा सकता है। यह दुनिया का दस्तूर है कि सभी लोगों को संतुष्ट नहीं किया जा सकता, इसलिए आरिफ अक़ील के खिलाफ भी असंतुष्टों की अच्छी-खासी जमात इकट्ठा हो चुकी थी और गाहे-बगाहे असंतोष के गुबार उठते-बैठते भी रहे, लेकिन अक़ील का किला अभेद्य ही रहा। 

यादें शेष : पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ आरिफ अक़ील 

कहा जाता है कि राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी स्थायी नहीं होती तथा समयानुकूल संबंधों में भी उतार-चढ़ाव आता है। परंतु अक़ील को करीब से जानने-समझने वाले लोगों का कहना है कि एक बार जो अक़ील का हो गया फिर वह उन्हीं का होकर रह जाता था। इस बात की पुष्टि इस ट्वीट से होती है जिसमें कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने लिखा है कि "हमें बेहद दुख है, मेरे मित्र व भाई आरिफ अक़ील का आज निधन हो गया। युवक कांग्रेस से लेकर आज तक हमारा लगभग 40 वर्षों का भाई समान पारिवारिक संबंध रहा।"

यादें शेष : पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के साथ आरिफ अक़ील 

यही नहीं, विपक्ष के नेताओं से भी उनके दोस्ताना संबंध रहे। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बाबूलाल गौर और आरिफ अक़ील की दोस्ती खूब चर्चाओं में रहती थी। बताया जाता है कि दोनों नेता सप्ताह में एक बार सहभोज में शामिल होते थे। कहा तो यह भी जाता है कि गौर साहब उत्तर भोपाल में पूर्व मंत्री आरिफ की मदद करते थे, जबकि आरिफ अकील भी गोविंदापुरा क्षेत्र में गौर साहब की मदद किया करते थे। 

हर सफल व्यक्ति के जीवन में संघर्ष की गाथा होती है। भला, आरिफ अक़ील इससे कैसे वंचित रहते। उनका राजनीतिक कैरियर भी संघर्षों से भरा था हालांकि इन्हें अपने पहले ही चुनाव में जीत मिली थी जिसके बाद ये उत्साह से लबरेज थे हालांकि हार का सामना भी इन्हें करना पड़ा था। लेकिन ये घबराए नहीं और लगातार संघर्ष करते रहे। आरिफ का कद बढ़ते हुए राजनीतिक अनुभवों के साथ बढ़ता चला गया। इन्होंने साल 2013 के चुनाव में मोदी लहर में भी जीत हासिल की, 2018 के विधानसभा चुनाव में भी मोदी लहर के बावजूद ये विधायक बने। साल 1998 के बाद 2018 तक आरिफ ने जब तक चुनाव लड़ा तब तक जीत हासिल की।

शेर-ए-भोपाल नाम से चर्चित रहे पूर्व मंत्री आरिफ अक़ील भोपाल उत्तर विधानसभा सीट पर 40 सालों तक सक्रिय रहे। मिलन सार और हर वर्ग के व्यक्ति के लिए हमेशा तैयार रहने वाले आरिफ अक़ील के बारे में कहा जाता है कि जो भी उनके घर किसी समस्या के लिए पहुंच जाता था, वो अपना सारा काम छोड़कर उसकी मदद के लिए दौड़ पड़ते थे।

पिछले साल 2023 के हुए विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज सिंह चौहान भी उत्तर विधानसभा में आरिफ अक़ील की सीट को नहीं हिला पाए थे। विधानसभा चुनाव में स्वास्थ खराब होने के चलते आरिफ अक़ील ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। कांग्रेस ने उनके पुत्र आतिफ अकील को अपना उम्मीदवार बनाया, जिन्होंने एक बड़ी जीत दर्ज की और विधायक बने। पूर्व मंत्री और भोपाल के लोकप्रिय नेता को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यही कहा जा सकता है कि "आतिफ को उत्तर भोपाल की सौंप कर कमान, इस दुनिया-ए-फानी से कूच कर गए भाईजान।"

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