अंग्रेज़ों की चाल चल रहा सीबीएसई बोर्ड, अंग्रेजी भाषा को मिली जगह उर्दू को नहीं


✍️एम.डब्ल्यू.अंसारी (आईपीएस) सेवानिवृत्त डीजी

मारे देश भारत में पिछले कुछ सालों से हालात सुखद नहीं रहे हैं। इंसानों की मानसिकता इतनी गिर गई है या यूं कहें कि भोले भाले लोगों के कानों में इतना ज़हर भर दिया गया है कि इंसान भाषा से भी नफरत करने पर मजबूर हो गया है। जो भाषा कानों को सुख देती है, जिसने भारत की सभ्यता को एक सूत्र में पिरोया है, आज उसे समाप्त करने की बात कही जा रही है, यह खेदजनक है।

उर्दू शब्दों को खत्म करने की बात पहले भी कई बार हो चुकी है, लेकिन हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने जो आदेश जारी किया है, उससे उर्दू के छात्र हैरान व परेशान है।

गौरतलब है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने कल आदेश जारी किया है कि परीक्षाओं के प्रश्न पत्र अब पूरी तरह से अंग्रेजी या हिंदी में उपलब्ध कराए जाएंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीबीएसई ने निर्देश दिया है कि कक्षा 10 और 12 के प्रश्न पत्र केवल अंग्रेजी या हिंदी में मुद्रित किए जाएंगे, और यह भी जोर दिया है कि इन दोनों के अलावा किसी भी भाषा में बोर्ड की अनुमति के बिना मुद्रित नहीं किया जाएगा। आगे कहा गया है कि जो छात्र उस भाषा में उत्तर पत्र लिख रहे हैं जिसकी बोर्ड द्वारा अनुमति नहीं है, उन्हें उस विषय में अंक दिए बिना ही परिणाम घोषित कर दिया जाएगा।

इस फैसले से उर्दू माध्यम (सीबीएसई) स्कूलों में नामांकित हजारों छात्रों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और जो छात्र इस फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, उनमें मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (ड।छन्न्) और उसके जैसे इदारे के सभी छात्र और छात्राएं शामिल हैं। जहां छात्रों को उर्दू में पढ़ाया जाता है।

यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि सीबीएससी द्वारा भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं की सूची में शामिल उर्दू को हटाने का प्रयास भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के खिलाफ है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तीन भाषा का फॉर्मूला है जिसके तहत छात्रों को कम से कम तीन भाषाएं सीखने की आवश्यकता होती है, जिसमें छात्र की मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में से एक शामिल है। भारत के उत्तरी क्षेत्र के कई हिस्सों जैसे लखनऊ, दिल्ली और उनके आसपास के क्षेत्रों में, उर्दू मातृभाषा है, उसी तरह किसी की भाषा तेलुगु है, किसी की मराठी है, किसी की भोजपुरी है और छात्रों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करने का भी पूरा अधिकार है राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दिया गया है, इसलिए सवाल उठता है कि क्या सीबीएसई बोर्ड राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अनदेखी कर रहा है।

सीबीएसई का 10वीं कक्षा के उर्दू प्रश्नपत्रों को हटाने का निर्णय सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के दृष्टिकोण के खिलाफ है। एक ओर, सरकार उर्दू सहित सभी भारतीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा दे रही है, और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा पर जोर देती है। लेकिन सीबीएसई द्वारा उर्दू प्रश्नपत्रों को खत्म करना इन प्रयासों को कमजोर करता है। यह कदम न केवल शैक्षणिक प्रगति में बाधा डालता है बल्कि उन छात्रों को भी हतोत्साहित करता है जो अपनी मातृभाषा में अध्ययन करने का प्रयास कर रहे हैं।

केंद्रीय बोर्ड के इस फैसले के बाद यह बात सामने आ गई है कि उर्दू भाषा की जन्मस्थली भारत की धरती अपनी बेटी के लिए संकीर्ण होती जा रही है। हालांकि हकीकत तो यह है कि यह उर्दू दूसरे देशों में तो अपना जादू बिखेर रही है, लेकिन अपने ही देश में इसे खत्म करने की साजिश रची जा रही है। एक निश्चित नीति और एक निश्चित मानसिकता के तहत उर्दू को सरकारी और सार्वजनिक जीवन से धीरे-धीरे हटाया जा रहा है और एक व्यवस्थित योजना के तहत उर्दू के खिलाफ प्रचार तेज कर दिया गया है।

उर्दू के प्रति पूर्वाग्रह का कारण यह है कि कभी सरकारी कार्यालयों से उर्दू शब्दों को खत्म करने की बात की जाती है, तो कभी पूर्वाग्रह के कारण सरकारी विज्ञापनों से उर्दू को हटा दिया जाता है यह असहनीय है। इससे पता चलता है कि उर्दू के प्रति नफरत कितनी बढ़ गई है। सीबीएसई बोर्ड द्वारा गंगा जमनी तहजीब को खत्म किया जा रहा है। बोर्ड का यह निर्णय भारतीय सभ्यता के गौरव को नष्ट करने का निर्णय है। यह आदेश भारत को विश्व मंच पर पहचान दिलाने वाले गालिब के खिलाफ है। जिसकी हम सभी भारतीय और उर्दू प्रेमी कड़ी निंदा करते हैं और सीबीएसई बोर्ड से मांग करते हैं कि इस तरह के बेवकूफी भरे फैसले लेकर एक पवित्र शिक्षण संस्थान को नफरत की राजनीति का अड्डा न बनाएं।

कल जब सीबीएसई बोर्ड ने इस फैसले की घोषणा की तो छात्रों से लेकर शिक्षकों तक हर कोई हैरान रह गया। छात्रों के अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हो गये। लेकिन इन सबके बावजूद उर्दू विद्वान चुप क्यों हैं? दिल्ली जैसी जगह पर बैठे बड़े-बड़े उर्दू सज्जनों ने इस अन्याय के विरुद्ध किसी प्रकार का विरोध क्यों नहीं किया? जिनकी आजीविका उर्दू है और जो उर्दू के संरक्षण और अस्तित्व के नाम पर लोगों को धोखा दे रहे हैं। उर्दू प्रेमियों से अनुरोध है कि भारत को तोड़ने वाले इस फैसले के खिलाफ दिल्ली में जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन करें, इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर भी विरोध होना चाहिए। क्योंकि उर्दू पूरे भारत को एक करने का काम कर रही है और नफरत के राजनेता भारत को टुकड़ों में बांटना चाहते हैं, लेकिन सच तो यह है कि उर्दू को खत्म करने से भारत की सभ्यता, भारत की एकता अखंडता खत्म होने के समान है।

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