उर्दू मोहब्बत और तहज़ीब की ज़बान है, इसे ज़िंदा रखना हम सबकी ज़िम्मेदारी : मुफ़्ती दानिश परवेज़
- पुराने भोपाल में उर्दू अदब की शान-ओ-शौकत से भरी महफ़िल “शाम-ए-अदब” का शानदार आयोजन
✍️सप्तग्रह रिपोर्टर
भोपाल। राजधानी भोपाल के ऐतिहासिक इलाक़े शाहजहानाबाद में अंजुमन नौजवान शुअरा कमेटी के तहत एक बेहतरीन मुशायरे “शाम-ए-अदब” का इंतज़ाम किया गया, जिसमें नौजवान शायरों ने अपनी शायरी से श्रोताओं का दिल जीत लिया। यह शाम अदब के चाहने वालों के लिए यादगार साबित हुई, जिसने उर्दू की मिठास और इसकी अदबी ताक़त को एक बार फिर महसूस कराया।
महफ़िल “शाम ए अदब” मुशायरे की अध्यक्षता ऑल इंडिया उलमा बोर्ड, मध्य प्रदेश के उपाध्यक्ष मौलाना मुफ़्ती सैयद दानिश परवेज़ नदवी ने की। महफ़िल के मेहमान-ए-ख़ुसूसी एडवोकेट आक़िब जावेद, जिन्हें फ़िक्र-ए-मिल्लत के नाम से भी जाना जाता है, ने भी अपनी मौज़ूदगी से “शाम ए अदब” मुशायरे को चार चांद लगा दिए। इन दोनों अहम शख़्सियतों का इस्तेकबाल अंजुमन नौजवान शोअरा कमेटी की जानिब से शाल और गुलाब के फूलों से किया गया।
इस मौके पर “शाम ए अदब” मुशायरे के सदर मौलाना मुफ़्ती सैयद दानिश परवेज़ नदवी ने अपने सदारती ख़िताब में कहा कि, “उर्दू हमारी तहज़ीब का अहेम हिस्सा है। ये सिर्फ़ एक ज़बान नहीं बल्कि हमारे एहसासात, हमारी मोहब्बतों और हमारे जज़्बात की अक्सबंदी है। इस तरह की महफ़िलें उर्दू के फ़रोग़ के लिए बहुत अहम हैं। अंजुमन नौजवान शुअरा कमेटी का ये अज़्म क़ाबिल-ए-तारीफ़ है कि वो शहर के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में ऐसी महफ़िलें क़ायम करके उर्दू की रोशनी फैलाना चाहती है।”
शाम-ए-अदब मुशायरे के मेहमान-ए-ख़ुसूसी आक़िब जावेद साहब फ़िक्र ए मिल्लत ने नौजवान शायरों को अपने तजुर्बे और लफ़्ज़ों से हौसला दिया। उन्होंने कहा, “पहले भोपाल की गलियों में उर्दू की तख़्तियाँ और कशिश मौजूद थीं, मगर अब इसकी रौनक़ कम होती जा रही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि हमने खुद उर्दू का दामन छोड़ा है। अगर हम अपनी पहचान और तहज़ीब को बचाना चाहते हैं तो हमें इसे अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में शामिल करना होगा।”
इस शाम-ए-अदब मुशायरे में नौजवान शायर मोहम्मद आसिफ़, मोहम्मद कैफ़, इंजीनियर मुबश्शिर, मोहम्मद यूसुफ़ ख़ान, इंसाफ़ ख़ान, इमरान ख़ान और औरंगज़ेब ने अपने कलाम से महफ़िल में मौजूद श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इन नौजवान शायरों के जोशीले और जज़्बाती अशआर ने इस बात को साबित किया कि उर्दू का मुस्तक़बिल रोशन है, और नई नस्ल में इसका शौक़ और इज़्ज़त बरकरार है।
अंजुमन नौजवान शुअरा कमेटी के संयोजक कारी सैयद शाहवेज़ परवेज़ हुसैनी नदवी ने इस मोक पर ऐलान किया कि कमेटी का ये इरादा है कि शहर के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में ऐसी अदबी महफ़िलों का सिलसिला जारी रखा जाए, ताकि उर्दू की बक़ा को यक़ीनी बनाया जा सके और नई पीढ़ी में उर्दू अदब और अदब से मोहब्बत पैदा की जा सके। उनका कहना था कि, “उर्दू ज़बान मोहब्बत, भाईचारे और इंसानियत का पैग़ाम देती है, इसकी हिफ़ाज़त हम सबकी जिम्मेदारी है।”
इस महफ़िल शाम-ए-अदब मुशायरे की नज़ाकत और खूबसूरती का ख़ास अंदाज़ इसके संचालन में भी दिखाई दिया। मुशायरे की निज़ामत नौजवान शायर फारूक़ ख़ालिद साहब ने दिलचस्प अंदाज़ में की और पूरे प्रोग्राम को बख़ूबी संभाला। जब कि मुशायरे का आग़ाज़ कारी सैयद शाहवेज़ परवेज़ हुसैनी नदवी साहब ने अपने नातिया कलाम से किया, जिसने महफ़िल को रूहानी रंग में डुबो दिया।
अंजुमन नौजवान शुअरा कमेटी की इस शाम-ए-अदब मुशायरे ने साबित कर दिया कि उर्दू अदब का चिराग़ इस नई पीढ़ी में भी पूरी आब-ओ-ताब के साथ रोशन है, और ऐसी महफ़िलें इस चिराग़ को हमेशा जलाए रखने में मददगार साबित होंगी।
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