आलमी राब्ता-ए-अदब-ए-इस्लामी का 40वां अंतरराष्ट्रीय भव्य सेमिनार का जयपुर में समापन
- मौलाना अब्दुर्रहीम नक्शबंदी की सेवाओं पर विस्तार से चर्चा और 90 से अधिक बुद्धिजीवीयों ने अपने अपने शोध पत्र पढ़े
✍️सप्तग्रह रिपोर्टर
भोपाल / जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर में “मौलाना अब्दुर्रहीम नक्शबंदी: जीवन और सेवाएँ” विषय पर आलमी राब्ता-ए-अदब-ए-इस्लामी का 40वां अंतरराष्ट्रीय सेमिनार तीन दिनों तक आयोजित हुआ। यह सेमिनार जामिया हिदाया के तत्वावधान में हुआ, जिसमें देश-विदेश के प्रमुख उलमा, लेखक, कवि, पत्रकार और बुद्धिजीवी शामिल हुए।
इस सेमिनार में 90 से अधिक शोध पत्र पढ़े गए, जिनमें मौलाना अब्दुर्रहीम नक्शबंदी की शिक्षा, साहित्य, समाज सुधार और उनके नेतृत्व की विस्तृत व्याख्या की गई।
सेमिनार का शुभारंभ कुरान की तिलावत से हुआ। इसके बाद नात-ए-पाक पेश की गई और जामिया हिदाया के छात्रों ने संस्था का खूबसूरत तराना प्रस्तुत किया।
जामिया हिदायत के प्रबंधक मौलाना फजलुर्रहीम मुजद्दी ने स्वागत भाषण देते हुए जामिया हिदाया के शिक्षण मॉडल को नदवतुल उलेमा और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का संगम बताया।
मौलाना अब्दुर्रहीम नक्शबंदी: एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व: अध्यक्ष आलमी राब्ता-ए-अदब-ए-इस्लामी
आलमी राब्ता-ए-अदब-ए-इस्लामी के अध्यक्ष मौलाना सैयद जाफर हुसैनी नदवी ने कहा, “मौलाना नक्शबंदी का जीवन शिक्षा, साहित्य और समाज सुधार के क्षेत्र में एक मिसाल है। उनकी सेवाएँ नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक बनी रहेंगी।” उन्होंने इस्लामी साहित्य के प्रचार-प्रसार में सामूहिक प्रयासों की जरूरत पर जोर दिया।
सेमिनार में मुफ्ती सैयद दानिश परवेज नदवी का विशेष शोध पत्र
ऑल इंडिया उलमा बोर्ड, मध्य प्रदेश के उपाध्यक्ष मुफ्ती सैयद दानिश परवेज नदवी ने “मौलाना अब्दुर्रहीम नक्शबंदी की मेज़बानी में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का ग्यारहवां सम्मेलन” पर एक प्रभावशाली शोध पत्र प्रस्तुत किया।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन 1973 में भारतीय मुसलमानों के अधिकारों और शरीयत की रक्षा के लिए किया गया था। उन्होंने मौलाना नक्शबंदी की मेज़बानी में हुए इस सम्मेलन को मुसलमानों के लिए ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि यह सम्मेलन मुसलमानों के लिए अधिकारों की रक्षा और शरीयत पर अमल करने का संदेश देता है।
इस अवसर पर मुफ़्ती दानिश ने पर्सनल लॉ के 11 वें सम्मेलन के मुख्य मुद्दे भी बताये
1. मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा:
मुसलमानों के पारिवारिक और धार्मिक कानूनों को सरकार की दखल से बचाने पर जोर।
2. शरीयत में हस्तक्षेप का विरोध:
मौलाना नक्शबंदी ने मुसलमानों से शरीयत की हिफाज़त के लिए एकजुट होने की अपील की।
3. दीन और शिक्षा का प्रचार:
दीन के ज्ञान और जागरूकता को बढ़ाने के लिए शिक्षा पर जोर दिया गया।
4. महिलाओं के अधिकार:
इस्लाम में महिलाओं को दिए गए अधिकारों पर चर्चा करते हुए उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
मुफ्ती सैयद दानिश नदवी ने कहा कि मौलाना नक्शबंदी की दूरदर्शिता ने भारतीय मुसलमानों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया। उनका नेतृत्व मुसलमानों के लिए एकजुटता और संघर्ष का प्रतीक है।
सेमिनार के समापन सत्र में मौलाना सैयद बिलाल अब्दुल हई हुसैनी नदवी ने कहा, “मौलाना नक्शबंदी की सेवाएँ इस्लामी साहित्य के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय हैं। उनके प्रयासों से इस्लामी साहित्य को नई पहचान और मजबूती मिली है।”
इस तीन रोज़ा सेमिनार के समापन पर मौलाना फजलुर्रहीम मजद्दी ने सभी मेहमानों और सेमिनार में अपने शोध पत्र प्रस्तुत करने वालों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह सेमिनार इस्लामी साहित्य के प्रचार-प्रसार में एक अहम कदम साबित हुआ है। उन्होंने तीन महीनों के अंदर मौलाना नक्शबंदी पर प्रस्तुत शोध पत्रों को प्रकाशित करने की घोषणा भी की।
यह सेमिनार इस्लामी साहित्य और मौलाना अब्दुर्रहीम नक्शबंदी की सेवाओं को समझने और उन्हें नई पीढ़ी तक पहुँचाने में मील का पत्थर साबित हुआ। मोलना ने कहा कि यहाँ प्रस्तुत किए गए गये विचार और शोध पत्र आने वाले समय में इस्लामी साहित्य के विकास में मार्गदर्शक बनेंगे।
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