उर्दू के साथ हो रही नाइंसाफी के खिलाफ लड़ने का संकल्प लें
विश्व उर्दू दिवस पर विशेष :✍️एम. डब्ल्यू. अंसारी
तराना-ए-हिन्द के खालिक़ अल्लामा इकबाल की पैदाइश 9 नवम्बर 1877 को सियालकोट में हुई और 12 अप्रैल 1938 को लाहौर में वफ़ात हुई। शायरे मशरिक अल्लामा इकबाल के जन्मदिन को उर्दू जगत में उर्दू दिवस के रूप में मनाया जाता है। इकबाल उन शायरों में से एक हैं जिन्होंने अपने विचारोत्तेजक कार्यों से न केवल उर्दू को विश्व स्तर पर पहुंचाया, बल्कि उर्दू भाषा और साहित्य को भी अपनी बुलंद कल्पना से वह स्थान दिया कि उर्दू की उत्कृष्ट कृति दुनिया की अन्य प्रमुख भाषाओं के बराबर है।यही कारण है कि भारत की बेटी यूएनओ की आधिकारिक भाषा बन गई है।
इकबाल इंसानियत के शायर थे। उनके लेखन को केवल उर्दू दायरे या मुस्लिम राष्ट्र तक सीमित देखना अनुचित होगा। लेकिन आज उर्दू को किसी खास मज़हब से जोड़ कर नफरत का बाज़ार गरम किया जा रहा है। हालंाकि ये बात याद रखना चाहिए भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं की सूची में उर्दू शामिल है। उर्दू को हटाने का प्रयास भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के खिलाफ है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तीन भाषा का फॉर्मूला है जिसके तहत छात्रों को कम से कम तीन भाषाएं सीखने की आवश्यकता होती है, जिसमें छात्र की मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में से एक शामिल है। भारत के उत्तरी क्षेत्र के कई हिस्सों जैसे लखनऊ, दिल्ली और उनके आसपास के क्षेत्रों में, उर्दू मातृभाषा है, उसी तरह किसी की भाषा तेलुगु है, किसी की मराठी है, किसी की भोजपुरी है और छात्रों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करने का भी पूरा अधिकार है राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दिया गया है। ऐसे में उर्दू के लिए एैसा तअस्सुब काबिले अफसोस है।
गौरतलब है कि एक दिन खास करके जशने उर्दू मनाना पर्याप्त नहीं है। यह उर्दू से प्रेम नहीं है। बल्कि अगर हम प्यार की इस मीठी भाषा के लिए कुछ करना चाहते हैं तो आइए इस विश्व उर्दू दिवस के मौके पर उर्दू के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ खड़े होने का संकल्प लें और यह भी याद रखना चाहिए कि उर्दू भारत की बेटी और हिंदी की बहन है और लिपि (रस्मुल खत) उसकी पोशाक है। सबसे महत्वपूर्ण उर्दू लिपि है। हमें उर्दू लिपि को अपनाना होगा। सभी को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे घर में कम से कम एक उर्दू अखबार जरूर आए।
इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम आने वाली पीढ़ियों को उर्दू भाषा में पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराना अपनी पहली जिम्मेदारी समझें। विशेषकर विज्ञान और गणित आदि की पुस्तकों के लिए संघर्ष करना होगा। उर्दू के नाम पर हम जो भी कार्यक्रम करें उसमें नई पीढ़ी को भी आमंत्रित करें। सरकार से अपने जायज हक की मांग करें। अगर हम अपनी भाषा की रक्षा के लिए कदम नहीं उठाएंगे और आवाज नहीं उठाएंगे तो सरकार हमें हमारा हक नहीं देगी और उर्दू के नाम पर स्थापित संस्थाएं भी धीरे-धीरे बंद हो जाएंगी जैसे राजस्थान उर्दू अकादमी बंद हो गई। इस प्रकार छोटे-छोटे कदमों से हम स्वयं अपनी भाषा के रक्षक बन सकते हैं और अपनी भाषा के अस्तित्व एवं विकास में सहभागी बन सकते हैं।
गौरतलब है कि आज उर्दू को हर जगह से खत्म करने की कोशिश की जा रही है और कहा जाता है कि उर्दू मुसलमानों और मुगलों की भाषा है। हालाँकि उर्दू मुस्लिम भाषा नहीं है, न ही यह कोई विदेशी भाषा है, यह भारत की बेटी है और भारत में ही पली-बढ़ी है और यह सभी धर्मों के अनुयायियों की भाषा है। सभी धर्मों के लोगों ने बिना भेदभाव के उर्दू की सेवा की है। उर्दू भाषा गंगा जमनी सभ्यता की भाषा है और यह भी याद रखना चाहिए कि उर्दू साहित्य और पत्रकारिता को बढ़ावा देने में गैर-मुसलमानों की भी सेवाएँ रही हैं। लेकिन मौजूदा सरकारें उर्दू के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हुए कभी शहरों, कभी सड़कों तो कभी स्टेशनों के नाम, जो पहले उर्दू में हुआ करते थे, अब बदले जा रहे हैं। कभी पुलिस मुख्यालय से फरमान जारी होता है कि अब पुलिस विभाग में उर्दू भाषा का प्रयोग नहीं किया जायेगा। हालाँकि कई मुस्लिम कवियों ने हिंदू धर्म के महान व्यक्तियों के सम्मान में कविताएँ और निबंध लिखे हैं, क्योंकि उनके बीच भाईचारा था और इस उर्दू भाषा ने ही भारत के लोगों को एकजुट किया है, लेकिन भारत की बेटी और हिंदी की बहन को अपने ही देश में वह मुकाम नही मिल रहा है जिसके लिए आज हमें संघर्ष और प्रयास करने की ज़रूरत है।
(लेखक, सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक हैं)
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