बड़ी खबर : हाईकोर्ट की पुलिस थानों में मंदिर निर्माण पर रोक
- सरकार से पूछा सवाल : सीएस, पीएस व डीजीपी को भेजा नोटिस
✍️सप्तग्रह रिपोर्टर
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश के पुलिस थाना परिसरों में मंदिरों के निर्माण पर अंतरिम आदेश के तहत रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ ने प्रदेश के मुख्य सचिव(सीएस) , प्रमुख सचिव (पीएस) गृह विभाग, नगरीय प्रशासन, डीजीपी, कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक जबलपुर सहित जिले के सिविल लाइंस, विजय नगर, मदन महल और लार्डगंज को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। युगलपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 19 नवंबर को निर्धारित की है।
जबलपुर निवासी ओपी यादव की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों में धार्मिक स्थलों के निर्माण पर प्रतिबंधित आदेश जारी किये थे। पुलिस थाने भी सार्वजनिक स्थलों की श्रेणी में आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंधित आदेश के बावजूद भी मध्य प्रदेश के कई पुलिस थानों में मंदिरों का निर्माण करवाया गया है या करवाया जा रहा है। न्यायालयीन आदेशों को नजरअंदाज कर थाना परिसर के अंदर मंदिर निर्माण कराना सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का खुला उल्लंघन है।याचिकाकर्ता की तरफ से जबलपुर जिले के चार थाना में किये गये मंदिर निर्माण की फोटो भी याचिका के साथ प्रस्तुत की गयी थी। याचिका में राहत चाही गयी थी कि थाना परिसर में बने सभी मंदिरों को तत्काल हटाया जाये। इसके अलावा संबंधित थाना प्रभारियों के खिलाफ सिविल सर्विस रूल्स के तहत कार्रवाई की जाये। याचिका की प्रारंभिक सुनवाई पश्चात उक्त आदेश के साथ अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता सतीश वर्मा, अमित पटेल व ग्रीष्म जैन ने पक्ष रखा।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश
2003 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक स्थलों के निर्माण पर रोक लगाने का आदेश दिया था। यह आदेश खासतौर पर उन स्थानों के संदर्भ में था, जहां धार्मिक स्थल बनाने से समाज में असमानता और तनाव बढ़ने की आशंका थी।
मुख्य बिंदु:
सार्वजनिक स्थानों की रक्षा: कोर्ट ने यह कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक स्थलों का निर्माण सामान्य नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है।
धार्मिक असहिष्णुता: इस आदेश का उद्देश्य धार्मिक असहिष्णुता को कम करना और विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच सामंजस्य बढ़ाना था।
स्थानीय प्रशासन: कोर्ट ने स्थानीय प्रशासन को भी निर्देश दिए कि वे सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक स्थलों के निर्माण पर निगरानी रखें।
इस आदेश का व्यापक प्रभाव पड़ा और यह अधिकांश सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक स्थलों के निर्माण को नियंत्रित करने में सहायक रहा।
इधर, याचिकाकर्ता के वकीलों के अनुसार पुलिस थानों में सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त आदेश का उल्लंघन करते हुए मंदिर निर्माण किए गए हैं या किए जा रहे हैं। लिहाजा, उक्त कृत्य सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है। युगलपीठ में अगली सुनवाई 19 नवंबर को होगी।
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