मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी का "सिलसिला" के तहत स्मृति प्रसंग और रचना पाठ


  • सिवनी में हफ़ीज़ अंजुम की स्मृति में साहित्यकारों का जुटान

सप्तग्रह की रिपोर्ट 

भोपाल। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्वावधान में ज़िला अदब गोशा सिवनी द्वारा "सिलसिला" कार्यक्रम के तहत 15 दिसंबर रविवार को प्रसिद्ध शायर हफ़ीज़ अंजुम छपारवी को समर्पित स्मृति प्रसंग और रचना पाठ का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम एसएससी एज्युकेशन कॉलेज, सिवनी में ज़िला समन्वयक मिन्हाज क़ुरैशी के विशेष सहयोग से आयोजित हुआ।

कार्यक्रम की पृष्ठभूमि और उद्देश्य

उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कहा कि "सिलसिला" के माध्यम से प्रदेश के विभिन्न जिलों में साहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन हो रहा है। इस श्रृंखला का उद्देश्य स्थानीय साहित्यकारों और शायरों को मंच प्रदान करना और साहित्यिक धरोहर को संरक्षित करना है। सिवनी में आयोजित यह गोष्ठी हफ़ीज़ अंजुम छपारवी को समर्पित थी, जिन्होंने अपनी शायरी से न केवल सिवनी बल्कि समूचे उर्दू साहित्य को समृद्ध किया। उन्होंने कहा, "स्थानीय दिवंगत विभूतियों को समर्पित इन गोष्ठियों से न केवल उनकी स्मृति जीवंत होती है, बल्कि नई पीढ़ी को साहित्य और भाषा के महत्व को समझने की प्रेरणा भी मिलती है।"

हफ़ीज़ अंजुम की साहित्यिक यात्रा पर चर्चा

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. शफ़ी ख़ान शफ़ी ने हफ़ीज़ अंजुम छपारवी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर गहराई से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "हफ़ीज़ अंजुम छपारवी सिवनी के उस्ताद शायरों में से एक थे। उनकी ग़ज़लों ने उर्दू शायरी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने पारंपरिक शायरी की परंपरा को जीवित रखते हुए इसे अपने अनूठे अंदाज में प्रस्तुत किया। उनकी रचनाओं में सामाजिक सरोकार, प्रेम और मानवता की गहराई दिखाई देती है।"


मुख्य अतिथियों और रचना पाठ का आयोजन

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार बलवंतानंद श्रद्धानंद ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में दानिश ज़ैग़मी और सूफ़ी रियाज़निदा" उपस्थित थे। इस अवसर पर कई स्थानीय शायरों ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ किया, जो उर्दू साहित्य के विविध रंगों को प्रदर्शित करता है।

रचना पाठ सत्र में प्रस्तुत प्रमुख शेर:

सूफ़ी रियाज़ "निदा":

दिल को दुखाने वाला सितमगर नहीं था क्या।

आईना जिसने तोड़ा वो पत्थर नहीं था क्या।

इकराम "सदफ":

दार पे अपने रहबर को चढ़ा कर ख़ुश हैं।

क़ाफ़िले वालों ने ये कैसी हिमाक़त कर दी।।

अनीसा "कौसर":

ज़िन्दगी की राहों में कैसे कैसे पल आये।

मुफ़लिसी पे हंसते ही अश्क भी निकल आये।।

"मिन्हाज" क़ुरैशी:

हम आप सारे इसी आबो-गिल में रहते हैं।

जो अच्छे लोग हैं "मिन्हाज" दिल में रहते हैं।।

मसऊद "आतिश":

जिन्हें है नाज़ उजाले सलाम करते हैं।

उन्हीं के घर में अंधेरे क़याम करते हैं।।

अरुण तिवारी "अंजान":

ख़ुद को नेकी में ढाल कर रखना।

अपनी नीयत संभाल कर रखना।।

फारूक़ "शाकिर":

जा तो रहे हो चांद पे ऐ दोस्त ज़मीं से।

दुनिया की नफ़रतों को यहीं छोड़ के जाना।।

कार्यक्रम का संचालन और समापन

कार्यक्रम का कुशल संचालन सिराज क़ुरैशी ने किया। उन्होंने साहित्यिक गोष्ठी की गरिमा को बनाए रखते हुए शायरों और अतिथियों का परिचय दिया। कार्यक्रम के समापन पर ज़िला समन्वयक मिन्हाज क़ुरैशी ने सभी अतिथियों, रचनाकारों और श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए कहा, "यह गोष्ठी न केवल सिवनी के साहित्यिक योगदान को उजागर करने का प्रयास है, बल्कि नई पीढ़ी को भाषा और संस्कृति से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण मंच भी है।"

इस आयोजन ने सिवनी के साहित्यिक इतिहास को एक नई दिशा दी। हफ़ीज़ अंजुम छपारवी जैसे शायरों की स्मृति को सजीव करते हुए, यह कार्यक्रम नई पीढ़ी को साहित्य की ओर प्रेरित करने में सफल रहा। "सिलसिला" की यह कड़ी उर्दू साहित्य के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई।



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